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लता मंगेशकर भारतीय संगीत जगत की वह अनमोल धरोहर थीं, जिनकी आवाज़ ने कई पीढ़ियों को मंत्रमुग्ध किया। 28 सितंबर 1929 को इंदौर, मध्य प्रदेश में जन्मी लता जी ने भारतीय सिनेमा में छह दशकों से भी अधिक समय तक अपनी सुरीली आवाज़ से लोगों का दिल जीता। उन्होंने करीब 30 से अधिक भाषाओं में हजारों गीत गाए, लेकिन उनकी पहचान मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा की एक महान पार्श्वगायिका के रूप में रही। उनकी आवाज़ में जो मिठास, गहराई और भावनात्मक स्पर्श था, वह उन्हें अन्य गायकों से अलग बनाता था।
लता जी का जन्म एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर खुद एक प्रसिद्ध गायक और थिएटर कलाकार थे। बचपन में ही उन्होंने संगीत की बारीकियों को सीखना शुरू कर दिया था। लेकिन मात्र 13 वर्ष की उम्र में जब उनके पिता का निधन हो गया, तो परिवार की जिम्मेदारी लता जी के कंधों पर आ गई। उन्होंने अभिनय में भी हाथ आजमाया, लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि उनका असली जुनून गायन में ही है।
लता मंगेशकर को शुरुआती दिनों में काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा। एक समय था जब उनकी आवाज़ को “बहुत पतली” कहकर रिजेक्ट कर दिया गया था, क्योंकि उस दौर में गायिकाओं की भारी आवाज़ को अधिक पसंद किया जाता था। लेकिन उन्होंने अपने सुर और शैली को निखारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 1949 में आई फ़िल्म ‘महल’ का गाना “आएगा आने वाला” सुपरहिट हुआ और यह गीत उनकी किस्मत का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
लता जी ने 50,000 से अधिक गाने रिकॉर्ड किए, जो एक अविश्वसनीय उपलब्धि है। उनके गाए हुए कुछ अमर गीतों में “लग जा गले”, “अजी रूठ कर अब कहाँ जाइएगा”, “प्यार किया तो डरना क्या”, “ऐ मेरे वतन के लोगों”, “तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा नहीं” जैसे गाने शामिल हैं। उन्हें ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी शामिल किया गया, क्योंकि उन्होंने सबसे अधिक गाने रिकॉर्ड किए थे।
1963 में जब उन्होंने भारत-चीन युद्ध के दौरान “ऐ मेरे वतन के लोगों” गाना गाया, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आँखों में आंसू आ गए थे। यह गीत आज भी देशभक्ति की भावना को जगाने का काम करता है।
लता जी अपने निजी जीवन को बेहद सादगी और अनुशासन में जीती थीं। उन्हें क्रिकेट और कारों का बेहद शौक था। वह भारत-पाकिस्तान मैच बड़े चाव से देखती थीं और सचिन तेंदुलकर की बहुत बड़ी फैन थीं। साथ ही, उन्हें अपनी पसंदीदा कार ‘मर्सिडीज’ भी बहुत पसंद थी, जिसे उन्होंने खुद खरीदा था।
लता जी को अनगिनत पुरस्कार और सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें भारत रत्न (2001), दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड (1989), पद्म भूषण (1969), पद्म विभूषण (1999) सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले। उन्हें तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कई फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिले।
2022 में जब पूरी दुनिया कोविड महामारी से जूझ रही थी, तब लता जी भी इस वायरस की चपेट में आ गईं। उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती गई और 6 फरवरी 2022 को उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली। उनकी मौत के साथ ही भारतीय संगीत जगत का एक स्वर्णिम युग समाप्त हो गया।
लता मंगेशकर सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक भावना थीं, जो सदियों तक जीवित रहेंगी। उनकी आवाज़ आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। वे सही मायनों में भारतीय संगीत की ‘स्वर कोकिला’ थीं और हमेशा रहेंगी।
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