जगदलपुर। DRG’S Women Commandos : वो हर खतरे को आने के ठीक पहले भांप और नाप लेती हैं। उसके बाद पूरी सटीकता के साथ शुरू होता है उनका एक्शन। ये सबकुछ होता है इतनी तेजी से कि दुश्मन को आहट मिलने के पहले ही उसका काम तमाम हो जाता है।
बस्तर के जंगलों में घूमने वाले नक्सलियों के जेहन में इन महिला कमांडोज़ का डर एक नश्तर की तरह उतर जाता है। इनको गुरिल्ला युद्ध में दुनिया का सबसे खतरनाक कमांडो माना जाता है। इनको लोग DRG की महिला कमांडोज़ के नाम से जानते और पहिचानते हैं।
DRG’S Women Commandos : कैसे बनाई जाती हैं ये कमांडोज़
दरअसल आत्म समर्पण कर चुके नक्सलियों को विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) बनाकर नक्सलियों के विरुद्ध उतारने की जो रणनीति बनाई गई थी। वहीं, 2008 में जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) बल की टीम तैयार हुई । रक्षा विशेषज्ञ ये मानते हैं कि डीआरजी गुरिल्ला युद्ध में दुनिया का सबसे खतरनाक बल है।
स्थानीय बोली-भाषा के साथ ही क्षेत्र के भूगोल की अच्छी समझ होने से इस बल ने नक्सलियों पर पूरी तरह नकेल कस दी है। बल में सम्मिलित पूर्व नक्सली और महिला कमांडोज इसकी सबसे बड़ी ताकत हैं। बल की अगुवाई महिला कमांडो करती हैं।
महिलाओं को इस बल में शामिल करने से अब नक्सलियों को जवानों पर शोषण का झूठा आरोप लगाने का भी मौका नहीं मिलता। डीआरजी ने एक दशक में पांच हजार से अधिक सफल अभियान और 800 से अधिक नक्सलियों को मार गिराया है।
एक साल में कितने नक्सली किए ढेर
पिछले एक वर्ष में बस्तर में 273 नक्सलियों को मार गिराया गया है, जिसमें सबसे बड़ा योगदान डीआरजी बल का रहा है। इस समय बस्तर में 50 हजार से अधिक सुरक्षा बल तैनात हैं, जिसमें लगभग 4,000 डीआरजी के जवान हैं। इसके बाद भी बस्तर में नक्सल अभियान की अगुवाई DRG करता है।
नक्सल संगठन छोड़कर 2014 में डीआरजी में भर्ती होकर इंस्पेक्टर रैंक तक पहुंचे एक अधिकारी कहते हैं कि नक्सल संगठन में रहने के कारण हमें नक्सलियों की रणनीति के बारे में जानकारी रहती है। इसका हमें रणनीतिक लाभ मिलता है। स्थानीय गोंडी-हल्बी बोली बोलते हैं, जिससे खुफिया सूचना भी हमें ग्रामीणों से मिल जाती है।
कई राज्यों में ट्रेनिंग, 12 घंटे रोजाना एक्सरसाइज
नक्सल मोर्चे पर DRG जवानों की सफलता तो दिखाई देती है, लेकिन इसके पीछे कड़ा अभ्यास भी है। DRG ने असम, तेलंगाना से लेकर कई राज्यों में गुरिल्ला युद्ध का विशेष प्रशिक्षण लिया है। यहां तक कि श्रीलंका से भी विशेषज्ञ बुलाकर जवानों को प्रशिक्षण दिया गया है।
दंतेवाड़ा पुलिस अधीक्षक गौरव राय कहते हैं कि डीआरजी के जवान या तो अभियान पर होते हैं, या फिर मैदान में। प्रतिदिन 12 घंटे कड़ा अभ्यास सत्र होता है, ताकि लंबे अभियान में वे थके नहीं। घने जंगल के भीतर तीन से चार दिन तक बिना खाए-पिए और सोए 70 किलो से अधिक वजन लेकर यह बल 100 किमी तक पैदल अभियान करने में सक्षम है।
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