
संसद में नोटों की गड्डी मिलने पर हंगामा, पहले भी मिल चुकी हैं नोटों की गड्डी, जानिए कब-कब मचा कैश कांड पर शोर
भारतीय संसद की कार्यवाही में कई बार ऐसे विवादित मुद्दे उठ चुके हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया और नैतिकता पर सवाल उठाते हैं। इनमें से एक सबसे सनसनीखेज मामला तब सामने आया, जब संसद में नोटों की गड्डी का मामला उजागर हुआ। यह घटनाएं न केवल राजनीति के गलियारों में हलचल मचाती हैं, बल्कि पूरे देश में एक नैतिक बहस की शुरुआत भी करती हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि संसद में नोटों की गड्डी मिलने पर हंगामा कब-कब मचा और क्या थे उन घटनाओं के पीछे के कारण।
पहला कैश कांड – 1993: शिबू सोरेन की पार्टी पर पैसे लेकर वोट देने का आरोप
1993 का साल भारतीय राजनीति के लिए काफी विवादित था, जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के प्रमुख और तत्कालीन सांसद शिबू सोरेन की पार्टी पर आरोप लगे कि उन्होंने पैसे लेकर मतदान किया था। इस घटना को बाद में “कैश फॉर वोट” घोटाला कहा गया।
यह मामला उस समय सामने आया, जब शिबू सोरेन और उनके कुछ समर्थक सांसदों पर आरोप लगे कि उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के पक्ष में वोट देने के बदले पैसे लिए। यह आरोप इतना गंभीर था कि इसके बाद संसद में जमकर हंगामा हुआ और विपक्षी दलों ने इसे लोकतंत्र का उल्लंघन करार दिया। इस घटनाक्रम के बाद, विपक्षी दलों ने शिबू सोरेन और उनके समर्थकों की सदस्यता रद्द करने की मांग की। यह मामला इतना बढ़ गया कि संसद की कार्यवाही को बाधित कर दिया गया और इस पर गहन जांच की आवश्यकता महसूस की गई।
दूसरा कैश कांड – 2008: मनमोहन सरकार के अविश्वास प्रस्ताव पर नोटों का मामला
2008 में एक और बड़ा कैश कांड सामने आया। यह घटना उस समय की है, जब मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। संसद में विश्वास मत के दौरान एक अजीब सा दृश्य सामने आया, जो भारतीय राजनीति का एक काले धब्बे की तरह साबित हुआ। जब लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हो रही थी, तो नोटों की गड्डी लोकसभा स्पीकर के टेबल पर दिखाई दी।
यह दृश्य पूरे देश में सनसनी बन गया। आरोप यह थे कि कुछ सांसदों को अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट करने के बदले पैसे दिए गए थे। इसके बाद यह मामला चर्चा का विषय बन गया, और संसद में मौजूद सभी दलों ने सरकार के इस कदम को भ्रष्टाचार करार दिया। हालांकि इस मामले में जांच की गई, लेकिन ठोस प्रमाण न मिलने के कारण इसे पूरी तरह से साबित नहीं किया जा सका।
इस मामले में, सांसदों ने यह भी आरोप लगाया कि इसे भारतीय लोकतंत्र के सबसे उच्चतम संस्थान की गरिमा को ठेस पहुंचाने के रूप में देखा जा सकता है। विपक्षी दलों ने इस मामले को पूरी तरह से संसद के अंदर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को धोखा देने का आरोप लगाया। इस घटना के बाद, लोकसभा में कई नियमों और प्रोटोकॉल में बदलाव की मांग की गई, ताकि भविष्य में ऐसे मामलों से बचा जा सके।
कैश कांड के प्रभाव: संसद की कार्यवाही पर असर
इन दोनों घटनाओं ने भारतीय संसद की कार्यवाही को गंभीर रूप से प्रभावित किया। जहां एक ओर संसद की कार्यवाही में व्यवधान आया, वहीं दूसरी ओर यह घटनाएं लोकतंत्र की नैतिकता और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाने वाली साबित हुईं। ऐसे मामलों ने यह साबित कर दिया कि हमारे राजनीतिक संस्थानों को एक उच्च नैतिक मानक बनाए रखने की आवश्यकता है।
विपक्षी दलों का कहना था कि जब भी इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो यह भारतीय राजनीति की ईमानदारी और पारदर्शिता को चोट पहुंचाती हैं। इन घटनाओं के बाद, कई सुधारों की जरूरत महसूस की गई, ताकि संसद में इस प्रकार के भ्रष्टाचार और अनैतिकता को रोका जा सके।
संसद में सुधार की आवश्यकता
इन घटनाओं के बाद यह एहसास हुआ कि भारतीय संसद में पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिकता की आवश्यकता है। जब संसद के भीतर इस प्रकार के मामले उठते हैं, तो यह केवल राजनीति की छवि को खराब नहीं करता, बल्कि पूरे देश के लोकतांत्रिक संस्थानों पर भी प्रश्न चिह्न लगा देता है। इसके बाद कई सांसदों ने संसद में शुद्धता और उच्च नैतिकता बनाए रखने की बात कही।
संसद में बदलाव और सुधार की आवश्यकता महसूस की गई, खासकर उन प्रक्रियाओं में जहां मतविभाजन या विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होती है। यही नहीं, भारत सरकार ने इन घटनाओं के बाद यह भी माना कि संसद के भीतर सभी दलों को अपने आचार-व्यवहार पर कड़ी नजर रखनी चाहिए, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर कोई सवाल न उठे।
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