कुमारी सैलजा का सियासी सफर हमेशा से संघर्ष भरा रहा है, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वर्तमान में, वे एक बार फिर ऐसे दौर से गुजर रही हैं, जिसमें टिकट वितरण में हुई अनदेखी के चलते उन्होंने कांग्रेस के भीतर अपनी नाराजगी व्यक्त की है।
सैलजा की व्यथा:
- चुप्पी का असर: विधानसभा चुनाव के समय उनकी चुप्पी ने प्रदेश का सियासी माहौल गरमा दिया है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश की है।
- टिकट वितरण में अनदेखी: सैलजा ने आरोप लगाया है कि उनके समर्थकों को नजरअंदाज किया गया और कई ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया गया जो उनकी कसौटी पर खरे नहीं उतरते।
- मुख्यमंत्री पद की दावेदारी: सैलजा ने कहा कि उनकी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी बरकरार है, लेकिन अंतिम निर्णय कांग्रेस हाईकमान को लेना होगा।
राजनीतिक प्रतिक्रिया:
- विपक्ष का हमला: भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने सैलजा की नाराजगी को चुनावी मुद्दा बना दिया है। केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर और बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें अपनी पार्टियों में शामिल होने का निमंत्रण दिया है।
- सैलजा का दृढ़ता: सैलजा ने स्पष्ट किया है कि वे कांग्रेस से जुड़ी रहेंगी और पार्टी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अडिग है। उन्होंने कहा, “मेरी रगों में कांग्रेस का खून है।”
निष्कर्ष:
कुमारी सैलजा की स्थिति न केवल उनके लिए, बल्कि कांग्रेस के लिए भी महत्वपूर्ण है। उनकी नाराजगी और चुप्पी ने पार्टी के भीतर चल रही अंतर्कलह को उजागर किया है, जो चुनावी रणनीति पर असर डाल सकती है।
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