
पखांजुर। लालफीताशाही की तबाही : प्रदेश की भाजपा सरकार की तमाम घोषणाओं और योजनाओं को उन्हीं की भ्रष्ट अफसरशाही चौपट करने में जुटी हुई है। इस लालफीताशाही की तबाही का ही नतीजा है कि पखांजुर सिविल अस्पताल में पिछले 2 साल से प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र का शटर डाउन है। मजबूरन यहां आने वाले गरीब आदिवासी और अन्य लोग मेडिकल स्टोर्स से ब्रांडेड दवाएं खरीदने पर मजबूर हैं। इसके बाद भी इस मामले को लेकर कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।
लालफीताशाही की तबाही
प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि प्रदेश के अस्पतालों में दवाओं का पर्याप्त भण्डार रखा जाए, ताकि लोगों को परेशानी न उठानी पड़े, तो वहीँ दूसरी और लालफीताशाही उनके इसी आदेश में पलीता लगाती दिखाई दे रही है। ऐसे में सवाल तो ये है कि आख़िर कौन डकार रहा है गरीबों के हक़ की सरकारी दवाई ? बात यहीं तक होती तो ठीक था, मगर यहां तो और भी उल्टा मामला फंसा है।
प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र को समझें
दरअसल जनता को उच्च गुणवत्ता वाली जेनरिक दवाइयां बाजार मूल्य से कम कीमत पर लोगों को मिल सके, इस उद्देश्य से सरकार ने विभिन्न जगहों पर प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोले थे। ऐसा ही एक केंद्र पखांजूर सिविल अस्पताल में भी खोला गया था। जहाँ इस योजना में आम नागरिकों को बाजार से 60 से 70 फीसदी कम कीमत पर दवाइयां हो रही थी। पखांजूर सिविल अस्पताल में खोला गया प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र पर पिछले दो सालों से ताला लटका हुआ है। जन औषधि केंद्र बंद होने से सरकार की महत्त्वकांक्षी योजना का लाभ पखांजूर क्षेत्र की जनता को नहीं मिल पा रहा है। इससे इलाज कराने आये मरीजों के अलावा आम जनता को मजबूरन बाहर मेडिकल से महंगे दामों में ब्रांडेड दवाएं खरीदना पड़ रहा है।ऐसे मे पखांजूर क्षेत्र के ग्रामीण चाहते है कि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पुनः संचालित हो ताकि ग्रामीणों को कम कीमत मे दवाइयां उपलब्ध हो सकें ।
जेनेरिक दवाओं की खासियत भी समझें
असल में जेनरिक दवाईयां ब्रांडेड या फार्मा की दवाईयों के मुकाबले सस्ती होती हैं ,जबकि प्रभावशाली उनके बराबर ही होती है। प्रधानमंत्री जन औषधि अभियान मूलत: जनता को जागरूक करने के लिए शुरू किया गया था, ताकि जनता समझ सके कि ब्रांडेड मेडिसिन की तुलना में जेनेरिक मेडिसिन कम मूल्य पर उपलब्ध हैं. इसके साथ ही इसकी क्वालिटी में किसी तरह की कमी नहीं हैं। यह जेनेरिक दवायें मार्केट में मौजूद हैं जिन्हें आसानी से प्राप्त किया जा सकता हैं।परन्तु केंद्र सरकार की यह योजना पखांजूर इलाके मे पिछले दो सालो से दम तोड़ दी है।