
Supreme Court
Supreme Court : नई दिल्ली: 2020 के बाद पहली बार दिल्ली-एनसीआर के निवासियों को दिवाली पर पटाखे फोड़ने की अनुमति मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की अपील को मंजूरी देते हुए 18 से 21 अक्टूबर के बीच ग्रीन पटाखों की बिक्री और उपयोग की छूट दी है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पटाखों का इस्तेमाल केवल दिवाली से एक दिन पहले और दिवाली के दिन सुबह 6 बजे से 7 बजे तक और रात 8 बजे से 10 बजे तक ही किया जा सकता है।
Supreme Court : ग्रीन पटाखे क्या हैं?
ग्रीन पटाखे को औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) और राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) ने 2018 में विकसित किया था। इनमें पारंपरिक पटाखों की तुलना में हानिकारक रसायनों जैसे बेरियम, पोटैशियम नाइट्रेट, सल्फर और एल्युमिनियम की मात्रा बहुत कम होती है या बिल्कुल नहीं होती। इसके परिणामस्वरूप यह कम धुआं और कम प्रदूषण पैदा करते हैं।
Supreme Court : ग्रीन पटाखों के तीन प्रमुख प्रकार
SWAS (Safe Water Releaser): जलने पर जलवाष्प छोड़ता है, जिससे धूल के कण दब जाते हैं और धुआं कम निकलता है।
STAR (Safe Thermite Cracker): इसमें पोटैशियम नाइट्रेट और सल्फर नहीं होते, जिससे शोर कम और पीएम कणों का उत्सर्जन घटता है।
SAFAL (Safe Minimum Aluminium): इसमें पारंपरिक पटाखों की तुलना में अल्युमिनियम की मात्रा कम होती है या मैग्नीशियम का विकल्प इस्तेमाल होता है।
Supreme Court : कितना कम नुकसान करते हैं ग्रीन पटाखे?
CSIR-NEERI के अनुसार, ग्रीन पटाखे PM 10 और PM 2.5 के उत्सर्जन को 30-35% तक कम करते हैं। सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स जैसे गैसीय प्रदूषकों में भी 35-40% तक कमी देखी गई है। ध्वनि प्रदूषण भी कम होता है, क्योंकि इनमें निकलने वाली आवाज 120 डेसीबल से कम होती है।
Supreme Court : क्यों जरूरी है ग्रीन पटाखों का विकल्प?
दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों में वायु गुणवत्ता पहले ही खराब रहती है, और दिवाली के समय प्रदूषण स्तर और बढ़ जाता है। पारंपरिक पटाखों से हवा में सूक्ष्म कण और जहरीली गैसें बढ़ती हैं, जिससे सांस की बीमारियाँ और अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। ग्रीन पटाखे इन प्रभावों को कम करने का प्रयास करते हैं, ताकि त्योहार का आनंद भी सुरक्षित रूप से लिया जा सके।
Supreme Court : प्रदूषण पूरी तरह खत्म नहीं होता
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीन पटाखे पूरी तरह प्रदूषण मुक्त नहीं हैं, बल्कि पारंपरिक पटाखों की तुलना में कम हानिकारक हैं। सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बाद दिल्ली-एनसीआर में इनका सीमित और नियंत्रित उपयोग संभव होगा, जिससे वायु गुणवत्ता पर असर थोड़ा कम होगा, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं।