Sheikh Hasina: शेख हसीना
Sheikh Hasina: नई दिल्ली: बांग्लादेश में अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। मानवाधिकारों की सबसे प्रमुख संस्थाओं में शुमार एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस फैसले को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि हसीना और उनके कार्यकाल के तत्कालीन गृह मंत्री असदुज्जमां खान के खिलाफ चला मुकदमा न तो निष्पक्ष था और न ही अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरता है। संस्था का कहना है कि इस तरह की सजा 2024 के विद्रोह में मृतकों और पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं मानी जा सकती।
Sheikh Hasina: अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने सोमवार को दोनों नेताओं को जुलाई 2024 में हुए छात्र-नेतृत्व वाले विद्रोह के दौरान मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी करार दिया था। एमनेस्टी की महासचिव एग्नेस कैलामार्ड ने कहा कि इस तरह के गंभीर आरोपों पर निष्पक्ष सुनवाई अनिवार्य है, लेकिन हसीना की गैरमौजूदगी में जिस तेजी से फैसला सुनाया गया, वह न्याय प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाता है। उन्होंने यह भी बताया कि हसीना की ओर से अदालत द्वारा नियुक्त वकील को पर्याप्त तैयारी का अवसर नहीं दिया गया और बचाव पक्ष को कई महत्वपूर्ण साक्ष्यों पर सवाल उठाने की अनुमति भी नहीं मिली।
Sheikh Hasina: उधर, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार एजेंसी (यूएनएचआरसी) ने भी मामले को लेकर चिंता जताई है। यूएन की प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय अपराधों से जुड़े मामलों में निष्पक्ष, पारदर्शी और उचित प्रक्रिया का पालन अत्यंत जरूरी होता है, खासकर तब जब मुकदमा अनुपस्थिति में चलाया जाए और सजा-ए-मौत दी जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि संयुक्त राष्ट्र हर परिस्थिति में मौत की सजा का विरोध करता है। दोनों प्रमुख संस्थाओं ने बांग्लादेश में हुई न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए मामले की पुनर्समीक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया है।
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