
रायपुर : पास – फेल के खेल की सच्चाई : केंद्र सरकार ने 5 वीं से 8 वीं तक के छात्रों के प्रमोशन पर रोक लगा दी है। दो बार परीक्षा देने के बाद भी पास नहीं हुए तो फेल हो जाएंगे। नवोदय विद्यालओं में तो गनीमत है, क्योंकि वहां काफी संख्या में अध्यापक होते हैं,मगर जिस राज्य में 3 सौ स्कूल बगैर शिक्षक के चल रहे हों, 550 शालाओं में सिर्फ एक टीचर हो, और 13 हजार अतिशेष शिक्षक बिना किसी काम के हर माह 82 करोड़ की मलाई काट रहे हों। वहां पास – फेल के खेल की सच्चाई में कितना दम है ? ये बात भी आसानी से समझ में आ जाती है।
पास – फेल के खेल की सच्चाई :
दरअसल केंद्र सरकार ने पांचवी, आठवीं में जनरल प्रमोशन पर रोक लगाते हुए आदेश जारी किया है कि दो बार परीक्षा के बाद अगर पास नहीं हुए तो फेल कर दिया जाएगा। केंद्रीय और नवोदय स्कूलों में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त होती है तो वहां इसे जायज ठहराया जा सकता है, मगर जिस राज्य में सैकड़ों स्कूल बिना अध्यापक के चल रहे हों, वहां प्रश्न तो खड़े होते ही हैं न ? स्कूल शिक्षा के साथ मजाक तो यह है कि छत्तीसगढ़ में 13 हजार शिक्षक अतिशेष हैं, इन्हें हर महीने बिना काम के 82 करोड़ रुपए वेतन दिया जा रहा है। वहीं 300 स्कूल बिना टीचर और 5500 सिंगल टीचर के भरोसे चल रहे हैं।
ऐसे में प्राथमिक शिक्षा में क्वालिटी जरूरी हैं, क्योंकि, आगे की पढ़ाई के लिए नींव मजबूत होना आवश्यक है। इसीलिए भारत सरकार ने पांचवी, आठवीं बोर्ड परीक्षा में अब प्रमोशन का नियम ख़त्म कर दिया है।
भारत सरकार ने राजपत्र में जो आदेश छपवाया है। उसके मुतबिक पांचवी, आठवीं में पहली बार फेल होने पर एक मौका और दिया जाएगा। दूसरी बार अगर फेल हुए तो फिर गए समझो।
केंद्र सरकार ने 5 वीं, 8 वीं के नए परीक्षा पैटर्न को अपने यानि केंद्रीय स्कूलों और नवोदय विद्यालयों में लागू कर दिया है। राज्यों के लिए वहीं की सरकारों पर छोड़ दिया है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने किया ये
अब अगर छत्तीसगढ़ राज्य की बात करें तो मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार ने अच्छी पहल करते हुए पहले से 5 वी, 8 वीं में बोर्ड परीक्षा कर दिया है। यहां पहली बार में फेल होने पर दूसरी परीक्षा का एक मौका और दिया जाएगा मगर इसमें फेल नहीं किया जाएगा। कुछ शिक्षाविदों का तो ये भी कहना है कि अगर दो परीक्षा लेने के बाद भी किसी को अनुतीर्ण नहीं किया जाएगा तो फिर परीक्षा लेने का कोई मतलब ही नहीं। कोई भी छात्र फेल होने के डर से ही पढाई करता है। ऐसे में, जाहिर सी बात है कि सरकार जिस गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए पांचवीं, आठवीं बोर्ड परीक्षा का नियम बनाया है, उसका कोई रिजल्ट नहीं मिलेगा। क्योंकि, फेल होने की आशंका नहीं रहेगी तो फिर बच्चे पढ़ाई क्यों करेंगे?
297 बिना शिक्षक, 5484 स्कूल एक शिक्षक के भरोसे
अब जरा सा शिक्षा विभाग की जमीनी सच्चाई जान लेते हैं। दरअसल छत्तीसगढ़ में 5हजार 4 सौ 84 स्कूल सिंगल टीचर वाले हैं और 297 बगैर शिक्षक । यानि इन शालाओं में एक भी शिक्षक नहीं। चौंकाने वाली बात तो ये है कि 231 मिडिल स्कूल सिंगल टीचर के भरोसे चल रहे हैं जबकि 45 मीडिल स्कूलों में एक भी टीचर नहीं हैं । इन मिडिल स्कूलों में आठवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। वहां अगर एक शिक्षक या जीरो की स्थिति रहेगी तो प्रदेश के नौनिहालों के भविष्य का क्या होगा? प्रायमरी स्कूलों का और बुरा हाल है। छत्तीसगढ़ के 5 हजार 4 सौ 84 प्रायमरी स्कूलों में एक शिक्षक हैं तो 152 स्कूलों में एक भी टीचर नहीं।
7300 सरप्लस अध्यापक
ये छत्तीसगढ़ के सिस्टम की विडंबना है कि सैकड़ों स्कूलों में एक भी अध्यापक नहीं और साढ़े पांच हजार स्कूल एकल टीचर के भरोसे चल रहे हैं। उधर, रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और रायगढ़ जैसे बड़े शहरों में सबसे ज्यादा अतिशेष शिक्षक हैं। इन शहरों के कई शालाओं में 10 बच्चे भी नहीं हैं, मगर उसके लिए पांच-पांच, सात-सात शिक्षकों ने पैसे और ऊंची पहुँच के बल पर अपनी पोस्टिंग करा ली है। मिडिल स्कूलों में दुर्ग में 303, बिलासपुर में 211, रायपुर 250, जशपुर 246, सरगुजा 285, कांकेर 242, बस्तर 303 टीचर अतिशेष हैं तो प्रायमरी में रायपुर जिले में 424, बिलासपुर में 264, बलौदा बाजार में 211, सूरजपुर में 236, रायगढ़ में 217, बस्तर में 425, कांकेर में 318, कोरबा में 325, बलरामपुर में 251, बीजापुर में 272 अध्यापक अतिशेष हैं। ये सभी पिछले कई सालों से उसी स्कूल में जमे हुए हैं। कुल मिलाकर शहरों के स्कूलों में 7 हजार 300 अतिशेष शिक्षक हैं। इन शिक्षकों ने स्कूलों में स्वीकृत पद के बराबर शिक्षक होने के बाद भी ऊंची पहुँच या पैसे के बल पर अपनी पोस्टिंग करा ली है । स्कूल शिक्षा विभाग ने जरूरत नहीं होने के बाद भी शिक्षकों की पोस्टिंग कर दी।
13 हजार शिक्षक काट रहे मलाई
शुरूआती तौर पर टीचर्स की कमी को दूर करने के लिए प्रदेश में पहली बार स्कूलों का भी युक्तिकरण करने का फैसला लिया गया था। जिन शालाओं में 10 से कम बच्चे हैं, उन्हें पास के स्कूलों में मर्ज किया जाता था । छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं, जिसमें दो से पांच, सात बच्चे हैं। ऐसे 100 से अधिक स्कूलों में दो से तीन टीचर हैं। इनमें अधिकांश लोगों ने सिफारिश और पैसे के बल पर अपनी पोस्टिंग करा ली है। सरकार के खजाने पर ये बड़़ा बोझ है। चार-पांच बच्चों पर तीन-तीन शिक्षक ? सरकार डेढ़-दो लाख रुपए तो उनके वेतन पर ही खर्च कर रही है। और पढ़ा कितने बच्चों को रहे हैं..तीन से लेकर पांच-सात को ? स्कूलों के युक्तियुक्तकरण से करीब साढ़े पांच हजार शिक्षक अतिशेष निकलेंगे। और 7300 शिक्षक स्कूलों में सरप्लस है। कुल मिलाकर 13 हजार शिक्षक अतिशेष होंगे। इन्हें हर महीने 82 करोड़ रुपए बिना काम के वेतन दिया जा रहा है।
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