वन नेशन वन इलेक्शन: संभावनाएं, समाधान और कोविंद कमेटी की रिपोर्ट

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नई दिल्ली: कैबिनेट ने “वन नेशन वन इलेक्शन” के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, और इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में इस प्रणाली के वादे की घोषणा की थी और 15 अगस्त को लाल किले पर अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में भी इसका समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव देश की प्रगति को प्रभावित कर रहे हैं।

वन नेशन वन इलेक्शन क्या है?

वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि देश भर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ किए जाएं। वर्तमान में, राज्यों की विधानसभा और देश की लोकसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। इस प्रणाली के तहत, मतदाता एक ही दिन पर लोकसभा और विधानसभा दोनों के चुनाव करेंगे। पहले भी 1952, 1957, 1962, और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन बाद में कई विधानसभा और लोकसभा भंग कर दी गईं, जिससे यह परंपरा टूट गई।

वन नेशन वन इलेक्शन पर मंथन करने के लिए बनाई गई पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट 18 हजार 626 पन्नों की बताई जा रही है।

इसके पैनल का गठन वैसे तो 2 सितंबर 2023 को ही कर दिया गया था। यह रपट स्टेकहोल्डर्स-एक्सपर्ट्स से गंभीर मंथन के बाद 191 दिन के अनुसंधान का नतीजा है। कमेटी ने सभी असेम्बलीज का कार्यकाल 2029 तक करने का एक सुझाव दिया है।

वैसे तो यह तस्वीर मार्च 2024 की बताई जा रही है। इस में 2029 में एकसाथ चुनाव का लक्ष्य रखा गया है। उसके आधार पर विधानसभाओं और नगरीय निकाय के चुनाव का मॉडल दिया गया है।

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वन नेशन वन इलेक्शन क्या है जानें

आखिर क्या है वन नेशन वन इलेक्शन ? भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा इलेक्शन अलग-अलग समय पर हुआ करतेे हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब यह है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और प्रदेशों की विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।

आजादी के पश्चात 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं थीं। उसके पश्चात 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

पैनल की ओर से मिले 5 सुझावों को समझें

सभी प्रदेश अपनी विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाएं।
हंग असेंबली यानि किसी को बहुमत नहीं मिलने की दशा में , नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
पहले चरण में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एकसाथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे चरण में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं।
चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड बनाएगा।
कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की अत्याधुनिक योजन की सिफारिश की है।
कोविंद कमेटी ने 7 देशों की चुनावी प्रक्रिया पर गहन अनुसंधान करके रिपोर्ट तैयार की

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इस कमेटी में 8 सदस्य, सितंबर 2023 में बनी थी पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अगुआई में 8 मेंबर की कमेटी पिछले साल 2 सितंबर को बनी थी। 23 सितंबर 2023 को दिल्ली स्थित जोधपुर ऑफिसर्स हॉस्टल में वन नेशन वन इलेक्शन समिति की फर्स्ट मीटिंग हुई थी। इसमें पूर्व प्रेसीडेंट रामनाथ कोविंद, पूर्व मंत्री गुलाम नबी आज़ाद और होम मिनिस्टर अमित शाह समेत 8 मेंबर हैं। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमेटी के विशेष सदस्य बनाए गए हैं।

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर क्या संभावनाएं

अभी स्थिति ऐसी है वन नेशन-वन इलेक्शन की संभावना एक देश-एक चुनाव लागू करने के लिए कई प्रदेशों की विधानसभाओं का कार्यकाल घटेगा। जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव 2023 के आखिर में हुए हैं, उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हुए तो यह 2029 से ही लागू होगा। साथ ही इसके लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे।

फर्स्ट फेज़ : 6 प्रदेश , मतदान : नवंबर 2025 में

बिहारः वैसे तो मौजूदा कार्यकाल तो पूर्ण होगा। उसके पश्चात् का साढ़े तीन साल ही रहेगा।
प. बंगाल, पुडुचेरी और असम, केरल, तमिलनाडु, मौजूदा कार्यकाल 3 साल 7 महीने काम होगा। उसके पश्चात् का कार्यकाल भी साढ़े 3 साल का होगा।

सेकेण्ड फेज़ : 11 प्रदेश , मतदान : दिसंबर 2026 में

उत्तर प्रदेश, पंजाब व उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर, मौजूदा कार्यकाल 3 से 5 महीने घटेगा। उसके बाद सवा दो साल रहेगा।
हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, गुजरात, कर्नाटक: यहाँ पर भी मौजूदा कार्यकाल 13 से 17 माह तक काम होगा । उसके बाद का सवा दो साल रहेगा।
इन दो चरणों के बाद देश की सभी एसेम्बलीज़ का कार्यकाल जून 2029 में समाप्त होगा। सूत्रों के हवाले से आ रही जानकारी के अनुसार, कोविंद कमेटी विधि आयोग से एक और प्रस्ताव मांगेगी, निःसंदेह इसमें स्थानीय निकायों के चुनावों को भी शामिल करने की बात कही जाएगी।

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