
चमत्कार या चूक दो घंटे डीप फ्रीजर में पड़ा 'मृत' मरीज, चिता पर हुआ जिंदा...पढ़े पूरी खबर
उत्तर प्रदेश : कानपुर जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने सबको हैरान कर दिया। डॉक्टरों ने एक मरीज को मृत घोषित कर दिया, लेकिन दो घंटे डीप फ्रीजर में पड़े रहने के बाद, जब उसे चिता पर रखा गया, तो वह अचानक जिंदा हो उठा। यह घटना अब चर्चाओं में है और लोगों को चमत्कार या मेडिकल लापरवाही के बीच सोचने पर मजबूर कर रही है।
क्या है पूरा मामला?
कानपुर के एक अस्पताल में 72 वर्षीय रामकिशोर यादव को सीने में दर्द की शिकायत के बाद भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इसके बाद उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए परिवार वालों ने डीप फ्रीजर में रख दिया।
करीब दो घंटे बाद, जब रामकिशोर को चिता पर रखा गया और अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हुईं, तो अचानक उनके शरीर में हरकत होने लगी। यह देखकर परिवार के लोग चौंक गए और उन्होंने तुरंत डॉक्टर को बुलाया।
परिवार का क्या कहना है?
परिवार वालों का कहना है कि उन्होंने डॉक्टर की रिपोर्ट पर भरोसा करके शव को अंतिम संस्कार के लिए तैयार किया। “हमें लगा कि यह भगवान का चमत्कार है, क्योंकि चिता पर जाने के बाद उन्होंने आंखें खोल दीं।”
डॉक्टर की सफाई
डॉक्टर का कहना है कि मरीज की हृदयगति (Heart Rate) और श्वसन (Respiration) बेहद धीमी हो गई थी, जिससे उन्हें मृत समझा गया। यह एक दुर्लभ स्थिति हो सकती है जिसे कैटालेप्सी (Catalepsy) कहते हैं, जहां शरीर लंबे समय तक बिना हरकत के रहता है।
मेडिकल एंगल
- कैटालेप्सी (Catalepsy):
यह एक ऐसी मेडिकल स्थिति है, जिसमें मरीज की श्वसन और हृदय की गति इतनी धीमी हो जाती है कि उसे मृत समझ लिया जाता है। - डॉक्टरों की लापरवाही:
विशेषज्ञ इस घटना को मेडिकल चूक के रूप में भी देख रहे हैं। बिना पूरी जांच किए मृत घोषित करना गंभीर लापरवाही मानी जा रही है। - पुनर्जीवन (Revival):
ठंडे वातावरण में (जैसे डीप फ्रीजर) शरीर का तापमान कम होने से हाइपोथर्मिया (Hypothermia) हो सकता है, जो कभी-कभी शरीर को पुनर्जीवित करने में सहायक होता है।
लोगों की प्रतिक्रिया
यह घटना सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल हो रही है। जहां कुछ लोग इसे भगवान का चमत्कार मान रहे हैं, वहीं अन्य इसे डॉक्टरों की गंभीर लापरवाही बता रहे हैं।
निष्कर्ष
रामकिशोर यादव का यह मामला चिकित्सा विज्ञान के लिए एक पहेली बन गया है। यह घटना मेडिकल जांच प्रक्रिया में सुधार की जरूरत को भी उजागर करती है।
अब सवाल यह है कि इसे चमत्कार मानें या चिकित्सा विज्ञान की एक चूक?