
Madhya Pradesh Lok Sabha Elections
Madhya Pradesh Lok Sabha Elections : भोपाल : मध्यप्रदेश लोकसभा चुनाव में कांग्रेस में सन्नाटे सी हालत है। पहले तो पार्टी उम्मीदवारों के चयन में पिछड़ी, फिर वरिष्ठ नेताओं की अहम की लड़ाई और आपसी मनमुटाव के चलते कार्यकर्ता भी सुस्त नजर आने लगे हैं। चुनाव से ठीक पहले बिखराव की झड़ी और फिर उम्मीदवारों के चयन में पिछड़ चुकी कांग्रेस भी सुस्त नजर आने लगी है।
Madhya Pradesh Lok Sabha Elections : वहीं खजुराहो सीट पर सपा प्रत्याशी का नामांकन निरस्त होने से बीजेपी मिशन-29 को पूरा करने में दोगुने जोश में है। गुटबाजी में बंटी कांग्रेस के उम्मीदवार भी चुनाव प्रचार में अकेले पड़ गए हैं। कांग्रेस उम्मीदवारों के खेमों में सन्नाटे सी हालत है बुंदेलखंड की सागर, दमोह और टीकमगढ़ लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवारों के खेमों में सन्नाटे सी हालत है।
सागर से मैदान में उतरे कांग्रेस उम्मीदवार चंद्रभूषण बुंदेला गुड्डू राजा को बाहरी बताकर घेर रही है। हाल ही में विधानसभा में हार का सामना कर चुके तरवर सिंह को कांग्रेस ने लोधी वोट बैंक साधने के लिए दमोह से प्रत्याशी बनाया है, लेकिन बड़े नेताओं के साथ न होने से वे प्रह्लाद पटेल की रणनीति में अभिमन्यु की तरह उलझे दिख रहे हैं।
टीकमगढ़-निवाड़ी लोकसभा से कांग्रेस ने युवा नेता पंकज अहिरवार को टिकट दिया है। उनका मुकाबला सात बार सांसद और केन्दीय मंत्री वीरेंद्र खटीक से है। यहां भी कांग्रेस का खेमा ठंडा पड़ा है और पंकज युवा लॉबी के सहारे खुद ही प्रचार की कमान संभाल रहे हैं। विदिशा में भी पार्टी के बिखराव की कहानी चल रही है
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में अहम की लड़ाई नई बात नहीं है लेकिन लोकसभा चुनाव में यह मनमुटाव कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। बुंदेलखंड जैसे ही हालत विदिशा संसदीय क्षेत्र में हैं। यहां चुनाव में सक्रीय रहने वाले पूर्व विधायक शशांक भार्गव और कई जनपद, जिला पंचायत के सदस्य भगवा रंग में रंग चुके।
विदिशा में पूर्व सांसद प्रतापभानु शर्मा भी अकेले पड़ गए हैं और पुराने कार्यकर्ताओं के सहारे पांच बार सांसद और 18 साल सीएम रह चुके शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं। यहां भी कांग्रेस का प्रचार पार्टी के बिखराव की कहानी सुना रहा हैं। देवास में वर्मा-मालवीय के आपसी मतभेद पहले से उजागर हैं
देवास से मैदान में उतरे राजेंद्र मालवीय को प्रचार में स्थानीय नेता सज्जन सिंह वर्मा का साथ नहीं मिल रहा है। वर्मा और मालवीय के आपसी मतभेद पहले से ही उजागर हैं और इसी वजह से दोनों खेमों के कार्यकर्ता भी समर्थन में उतरने से बच रहे हैं। खंडवा सीट पर पूर्व सांसद ताराचंद पटेल के भतीजे नरेंद्र पटेल कांग्रेस की ओर से मैदान में हैं।
वे हाल ही में बड़वाह विधानसभा सीट से पराजित हो चुके हैं और पश्चिमी निमाड़ की प्रो- बीजेपी तासीर उनके सामने चुनौती है। समीकरण प्रतिकूल होने के कारण ही वरिष्ठ नेता और प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव यहां से पीछे हट चुके हैं। बालाघाट में मुंजारे पति-पत्नी आमने-सामने आ गए।
बालाघाट सीट पर मजबूती के दावे की हवा BSP के टिकट पर मैदान में उतरे कंकर मुंजारे ने निकाल दी है। कंकर मुंजारे कांग्रेस एमएलए अनुभा मुंजारे के पति हैं। चुनावी मुकाबले के चलते पति-पत्नी भी आमने-सामने आ गए हैं। कंकर मुंजारे के हाथी की सवारी करने से कांग्रेस कैंडिडेट सम्राट सारस्वार की मुश्किल बढ़ गई है।
सतना में मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा और सिटिंग सांसद गणेश सिंह के बीच है। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में सिद्धार्थ ने गणेश सिंह को हराया था, लेकिन इस मुकाबले में बसपा के टिकट पर नारायण त्रिपाठी के मैदान में आने से उनकी टेंशन बढ़ गई है। गणेश सिंह के पक्ष में बीजेपी तो जोर लगा रही है,
लेकिन विंध्य में कांग्रेस उम्मीदवार अलग-थलग पड़े दिखते हैं। यहां भी कांग्रेस का प्रचार कमजोर और सुस्त नजर आ रहा है। दिग्गी-नाथ का भी नहीं सहारा बीजेपी ने लोकसभा चुनाव को कांग्रेस के लिए चक्रव्यूह जैसा बना दिया है। बीजेपी की किलेबंदी के चलते छिंदवाड़ा में कांग्रेस नेताओं का पलायन जारी है और कमलनाथ इसमें पूरी तरह घिरे हुए हैं।
अपने खास रणनीतिकार और पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना, महापौर विक्रम अहाके के बीजेपी का दामन थामने के बाद नाथ अपने पुत्र नकुल की जीत के साथ अपनी साख बचाने में जुटे हैं। राजगढ़ से दिग्विजय सिंह खुद मैदान में हैं। लम्बे समय बाद चुनाव लड़ने की वजह से दिग्गी को अपने ही क्षेत्र में जीत के लिए जोर लगाना पड़ रहा है।
पुराने कार्यकर्ता और मतदाताओं को साधने वे पूरे लोकसभा क्षेत्र की पदयात्रा कर रहे हैं। नाथ और दिग्गी दोनों ही कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं, लेकिन कमलनाथ जहां छिंदवाड़ा में अपने पुत्र को जिताने में पूरी तरह व्यस्त हैं तो दिग्गी किले के रसूख बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
दोनों नेता इसी वजह से अपने-अपने गुट के उम्मीदवारों के प्रचार के लिए नहीं निकल पा रहे हैं। अरुण यादव गुना से उम्मीदवारी नहीं मिलने के बाद चुनाव प्रचार में रूचि लेते नहीं दिख रहे।
जबकि सुरेश पचौरी जैसे बड़े चेहरे भी कांग्रेस के पास नहीं बचे जो प्रदेश के लोकसभा क्षेत्रों में प्रभाव रखते हों। कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने की शुरुआत से ही पिछड़ी कांग्रेस अब प्रचार में भी काफी पीछे रह गई है।
Discover more from ASIAN NEWS BHARAT
Subscribe to get the latest posts sent to your email.