
Jagannath Yatra
Jagannath Yatra: पुरी : हर साल जब ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन आता है, तब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की विशेष स्नान यात्रा निकाली जाती है। इस पावन अवसर पर भगवानों को मंदिर से बाहर लाकर 108 पवित्र तीर्थ जलों से स्नान कराया जाता है। यह आयोजन धार्मिक उल्लास से भरपूर होता है, लेकिन स्नान के तुरंत बाद भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और मंदिर के पट 15 दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इस रहस्यमयी अवधि को ‘अनासरा लीला’ कहा जाता है।
Jagannath Yatra: भगवान का एकांतवास: अनासरा लीला का रहस्य
जब भगवान बीमार होते हैं, तो उन्हें एकांत में ले जाया जाता है। इस दौरान केवल उनके परम सेवक ‘दयितगण’ ही उनकी सेवा कर सकते हैं। भगवान को किसी प्रकार का भोग नहीं लगाया जाता, बल्कि औषधीय काढ़े और जड़ी-बूटियों से उपचार किया जाता है। यहां तक कि 24 घंटे चलने वाली विशाल रसोई भी 15 दिनों के लिए बंद कर दी जाती है। भगवान की सेहत की देखरेख एक वैद्य करता है जो प्रतिदिन उन्हें देखने आता है।
Jagannath Yatra: भक्त माधव दास की कथा: प्रेम के कारण भगवान ने ली बीमारी
एक कथा के अनुसार, माधव दास नामक एक भक्त भगवान जगन्नाथ की सेवा में पूर्णतः समर्पित था। वह वृद्धावस्था में गंभीर रूप से बीमार पड़ गया, लेकिन फिर भी सेवा से पीछे नहीं हटा। एक दिन मूर्छित हो जाने पर स्वयं भगवान जगन्नाथ उसकी सेवा में प्रकट हो गए। जब माधव ने यह देखा, तो वह भावविभोर हो गया। तब भगवान ने कहा कि वह उसके भाग्य में लिखी 15 दिन की बीमारी को स्वयं अपने ऊपर ले रहे हैं। तभी से यह विश्वास है कि भगवान हर साल 15 दिन अपने भक्तों के कष्ट को खुद पर ले लेते हैं।
Jagannath Yatra: पुरी के राजा की स्वप्न कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, उड़ीसा के राजा को भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि मंदिर के सामने वटवृक्ष के पास एक कुंआ खुदवाएं। उसी ठंडे जल से उन्हें स्नान कराना है और फिर वे 15 दिन एकांतवास करेंगे। जब यह अनुष्ठान किया गया, तो भगवान बीमार पड़ गए। भगवान ने राजा को बताया कि इस समय में वे किसी को दर्शन नहीं देंगे।
Jagannath Yatra: सदियों से चली आ रही परंपरा
इन दोनों कथाओं के कारण आज भी यह लीला हर साल दोहराई जाती है। भगवान जगन्नाथ को स्नान कराने के बाद मंदिर बंद कर दिया जाता है और 15 दिन की अनासरा लीला शुरू होती है। इसके बाद भगवान पुनः स्वस्थ होकर रथ यात्रा के माध्यम से भक्तों के बीच आते हैं। यह पूरी प्रक्रिया न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों के प्रेम और सेवा को कितना महत्व देते हैं।
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