
आज, 18 दिसंबर 2024, गुरु घासीदास जयंती मनाई जा रही है। यह दिन गुरु घासीदास जी के सम्मान में समर्पित है, जिन्हें सतनामी समाज का जनक माना जाता है। गुरु घासीदास ने अपने जीवन के माध्यम से सत्य, समानता और अहिंसा के संदेश को प्रचारित किया और समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाई।
गुरु घासीदास का इतिहास
गुरु घासीदास जी का जन्म 18 दिसंबर 1756 को छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी में हुआ था। वे एक साधारण किसान परिवार से थे लेकिन अपनी शिक्षा, साधना और समाज सुधार के कार्यों से उन्होंने पूरे समाज को नई दिशा दी।
उन्होंने सतनाम पंथ की स्थापना की, जो कि सत्य और नाम (ईश्वर का नाम) पर आधारित एक पवित्र धर्म है। इस पंथ के माध्यम से उन्होंने जाति-प्रथा, छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी और समानता का संदेश दिया।
इस दिन का महत्व
गुरु घासीदास जयंती केवल सतनामी समाज के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ और भारत के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। उनके सिद्धांतों और विचारों का प्रभाव आज भी लाखों लोगों के जीवन में देखा जा सकता है।
- संदेश: गुरु घासीदास ने कहा था कि “मनखे-मनखे एक समान”, यानी सभी मनुष्य बराबर हैं। यह संदेश सामाजिक समरसता का आधार है।
- पूजा-अर्चना: इस दिन गिरौदपुरी धाम, जो कि उनका प्रमुख तीर्थस्थल है, में हजारों श्रद्धालु जुटते हैं और उनकी शिक्षाओं को स्मरण करते हैं।
- समारोह: छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में सतनामी समाज के लोग इस दिन शोभायात्रा निकालते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और सतनाम पंथ के सिद्धांतों का प्रचार करते हैं।
गुरु घासीदास की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक
गुरु घासीदास ने सत्य की राह पर चलने और ईश्वर में विश्वास करने का मार्ग दिखाया। उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता और अन्याय को समाप्त करने का आह्वान किया। आज जब दुनिया में तनाव और भेदभाव की घटनाएं बढ़ रही हैं, गुरु घासीदास की शिक्षाएं और भी अधिक प्रासंगिक हो गई हैं।
गिरौदपुरी धाम का महत्व
गिरौदपुरी धाम, गुरु घासीदास की जन्मस्थली, छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहां स्थित 77 फीट ऊंचा जैतखंभ उनकी शिक्षाओं और सिद्धांतों का प्रतीक है। यह धाम हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है, विशेषकर गुरु घासीदास जयंती के अवसर पर।