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जगदलपुर : विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा की दूसरी महत्वपूर्ण डेरी गढई की रस्म अदायगी आज सीरहासार भवन में की गई।करीब 400 वर्षों से चली आ रही
इस परम्परानुसार बिरिंगपाल से लाई गई सरई पेड़ की टहनियों को एक विशेष स्थान पर स्थापित किया गया। और विधि विधान से पूजा अर्चना कर इस रस्म कि अदायगी के साथ ही रथ निर्माण के लिए माई दंतेश्वरी से आज्ञा ली गई।
इस मौके पर जनप्रतिनिधियों सहित स्थानीय लोग भी बडी संख्या मे मौजुद थे। इस रस्म के साथ ही विश्व प्रसिध्द दशहरा रथ के निर्माण कि प्रक्रिया आरम्भ करने के लिए लकड़ियों का लाना शुरू हो जाता है।
जगदलपुर के सिरहासार भवन मे आज दशहरा पर्व की दूसरी बड़ी रस्म डेरी गढई अदायगी की गई,रियासतकाल से चली आ रही इस रस्म में परम्परानुसार डेरी गढई के लिए बिरिंगपाल गाँव से सरई पेड़ कि टहनियां लाई जाती हैं
इन टहनियों को पूजा कर पवित्र करने के पश्चात लकड़ियों को गाढने के लिए बनाये गए गड्ढों में अंडा व् जीवित मछलियाँ डाली जाती हैं
जिसके बाद टहनियों को गा़ढकर इस रस्म को पूरा किया जाता है व् माई दंतेश्वरी से विश्व प्रस्सिद्ध दशहरा रथ के निर्माण प्रक्रिया को आरम्भ करने की इजाजत ली जाती है।
मान्यताओ के अनुसार इस रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरे के लिए रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है, करीब 400 वर्ष पुरानी इस परंपरा का निर्वाह आज भी पूर्ण विधि विधान के साथ किया जा रहा है।
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रियासत काल से चली आ रही बस्तर दशहरा कि इन परम्पराओं का निर्वाह आज भी बखूभी किया जा रहा है। डेरी गढई की इस रस्म की अदायगी के बाद परम्परानुसार बिरिंगपाल से लाई गई सरई की लकड़ियों से विशालकाय रथ निर्माण का कार्य आंरभ किया जायेगा।
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