एशियन न्यूज़ पॉलिटिकल डेस्क । भूपेश को हटाएगी कांग्रेस ! : क्या भूपेश को हटाएगी कांग्रेस ? ये सवाल आज सियासी गलियारों में आग की लपटों की तरह तेजी से लपलपाता हुआ बढ़ता जा रहा है ।
कभी यही भूपेश बघेल थे, जिन्होंने अजीत जोगी जैसे कद्दावर नेता का पत्ता साफ़ करने में कोई कोताही नहीं की । टीएस सिंहदेव को भी दरकिनार किया । ऐसे तमाम बड़े नेताओं की कांग्रेस भवन से विदाई में भूपेश बघेल का ही हाथ रहा।
जिस हाथ से उन्होंने न जाने कितनों का साथ छुड्वाया, क्या अब उनको भी वो हाथ छोड़ना पड़ेगा ? क्या है इसके पीछे का बदलता सामाजिक
समीकरण जानने के लिए बने रहिए एशियन न्यूज के साथ –
भूपेश को हटाएगी कांग्रेस ! : इसके लिए समझिए जनाधार वाला ये आधार
ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि ये आरोप छत्तीसगढ़ के साहू, आदिवासी और सतनामी समाज के लोग लगा रहे हैं । आरोप पर आरोप लगने की वजह से भूपेश बघेल की छवि गिरती जा रही है।
सत्ता जाने के बाद भूपेश बघेल के खिलाफ सैकड़ों शिकायत कांग्रेस हाईकमान को मिले है। पार्टी के लिए OBC नेता होने की वजह से भूपेश बघेल पर कार्रवाई
करने का भी आरोप अब बड़े नेताओं पर लग रहे है। ताजा शिकायत पत्र सामने आया है। जिसमें भूपेश बघेल को आदिवासी, सतनामी और साहू विरोधी बताया जा रहा है।
राहुल गाँधी की उदयपुर सम्मलेन की दिलाई याद
आगे शिकायत पत्र में कहा गया है कि राहुल गाँधी ने आपने उदयपुर सम्मेलन में और कई जगह आदिवासियों के हितैषी होने के बारे में बड़ी-बड़ी बातें की पर
आपके संरक्षण के कारण छत्तीसगढ़ प्रदेश जो कि आदिवासी, सतनामी और साहू बाहुल्य क्षेत्र है, यहां पर भूपेश बघेल ने सुनियोजित तरीके से इन्हें कमजोर करने का षड़यंत्र किया है
ताकि इनमें से कोई वर्ग का नेता मुख्यमंत्री का दावेदार कभी ना हो सकें। वैसे भी कांग्रेस ने हमेशा से छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के साथ छल किया जिसके कारण भूपेश का आदिवासी, सतनामी और साहू विरोधी चेहरा सामने आया ।
क्यों आदिवासी नेता नहीं हो सकता मुख्यमंत्री पद का दावेदार
आदिवासियों के लिए प्रदेश में 29 सीटें आरक्षित है विधान सभा में, तो भूपेश बघेल हो या टी. एस. सिंहदेव या चरणदास महंत इन तीनों ने मिलकर एक रणनीति के तहत् आदिवासी नेतृत्व को कमजोर किया
ताकि कोई भी आदिवासी नेता मुख्यमंत्री का चेहरा न बने । ऐसा करके सबसे पहले जो आरक्षित सीटों की संख्या पहले 34 थी उसे षड़यंत्रपूर्वक घटाकर 29 कर दिया, कांग्रेस ने हमेशा चाहे
अरविंद नेताम हों या महेन्द्र कर्मा, मोहन मरकाम, प्रेमसाय सिंह या राम पुकार सिंह या अमरजीत भगत, बोधराम कंवर हों या दीपक बैज प्यारे लाल कंवर, लखेश्वर बघेल हों
या मनोज मंडावी, झुमुक लाल भेड़िया हों या चनेश राम राठिया, महेन्द्र बहदुर हों देवव्रत हो या सुरेन्द्र बहादुर ऐसा कोई आदिवासी नेता जो मुख्यमंत्री का दावेदार हो सकता था।
सिंहदेव महंत और बघेल का असली खेल
उन्हें बघेल, महंत और सिंहदेव ने मिलकर निपटाया अन्य मामले में तीनों में मतभेद हो जाते हैं पर जहां कोई आदिवासी, सतनामी या साहू नेतृत्व उभरता है ये तीनों एक हो कर उन्हें निपटाते है
या अपमानित करके पार्टी छोड़ने को मजबूर कर देते हैं वर्तमान में ही जब 2018 में हमारी सरकार बनीं तब 30 विधायक आदिवासी थे ।
27 आरक्षित सीट से और 3 सामान्य सीट से उल्लेखनीय है कि प्रदेश में लगभग 20 सामान्य सीटें ऐसी है जहां आदिवासी मतदाता 50 हजार से भी अधिक है । उस हिसाब से आप जो बात करते हैं कि जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी
जिम्मेदारी तो उस हिसाब से प्रदेश में कांग्रेस को आदिवासी मुख्यमंत्री बनाना था । साहू, सतनामी उप मुख्यमंत्री, पर आपने क्या किया ?
मुख्यमंत्री, उप मुख्यंत्री, विधान सभा अध्यक्ष ये तीनों दूसरे को बना दिये ? इन तीनों ने मिलकर क्या किया ? आदिवासियों को आपस में लड़वाया। साहू और सतनामी को कमजोर किया।
भूपेश बघेल का असली खेल
भूपेश बघेल ने बहुत ही षड़यंत्रपूर्वक पहले अमरजीत भगत को सिंहदेव से भिड़वाया, बृहस्पत सिंह को भिड़वाया, प्रेमसाय सिंह को अलग किया, फिर निपटाया। वैसे ही रामपुकार सिंह, मनोज मंडावी को निपटाया फिर कवासी लखमा
और संतराम नेताम से मोहन मरकाम को निपटाया। दीपक बैज को खिलाफ भी कवासी लखमा का इस्तेमाल किया। मोहन मरकाम और दीपक बैज को विधानसभा में हरवाने के लिए उनके समर्थकों को भी डराकर या खरीदकर
इस्तेमाल किया और मरकाम, बैज को हराने कवासी लखमा से पैसा भिजवाया । क्या जबरदस्त षड़यंत्र किया ?
मोहन मरकाम का ऐसे किया काम तमाम
मोहन मरकार अध्यक्ष थे, उनका हमेशा अपमान किया। प्रदेश अध्यक्ष थे पर उनके कहने से एक भी निगम मंडल में नियुक्ति नहीं किये, पर जब बघेल, महंत और सिंहदेव को लगा कि मरकाम को आपका आर्शिवाद है तो कहीं आप उन्हें
मुख्यमंत्री ना बना दो करके इन तीनों ने मिलकर षड़यंत्र किया और कुमारी सैलजा का उपयोग कर मरकाम को हटवा दिया। पूरा प्रदेश जानता है। वैसे ही इन्होंने सतनामी नेता भी नहीं बनने दिया और उन्हें भी आपस में ही लड़वाकर
निपटाया शिव डहरिया और रूद्र गुरू को सामने रखकर बालदास , जैसे लोकप्रिय व्यक्ति को बार-बार अपमानित किया, बाल दास बघेल, सिंहदेव और महंत के पास दो साल चक्कर काटते रहे इन्होंने उन्हें सम्मान नहीं दिया, फिर
विधानसभा में जब बालदास जी भाजपा में चले गये । उन्हें वहां पूरा सम्मान मिला, उनके पुत्र को टिकट भी दिया। इधर बघेल और रविन्द्र चौबे ने षड़यंत्र कर गुरदायाल का टिकट काटा वहां रूद्र कुमार गुरु को देकर निपटाया, इधर
बालदास ने शिव डहरिया को निपटा दिया। कुल मिलाकर उन सबमें भी लड़ाई करवा सतनामियों का नुकसान करवा दिया।
आरक्षण को घटाने में किसका योगदान जानें
भूपेश बघेल ने कुणाल शुक्ला को हाईकोर्ट भेज कर सतनामियों के आरक्षण को भी कम करने का षड़यंत्र किया। वैसे ही बघेल महंत और सिंहदेव साहू नेतृत्तव के खिलाफ भी षड़यंत्र करते रहे। पहले इन तीनों ने मिलकर ताम्रध्वज साहू को
मुख्यमंत्री बनने से रोका फिर धनेन्द्र साहू जो कि मंत्री बनने से रोका सिंह देव ने छन्नी साहू का इस्तेमाल किया तो भूपेश बघेल ने लगातार उनकों अपमानित भी किया उधर महंत ने भी चुन्नी लाल साहू का लगातार तिरस्कार किया । .
भूपेश बघेल को मालूम था कि प्रदेश में ओबीसी में सबसे बड़ा वर्ग साहू समाज का है तो जैसे उन्होंने आदिवासियों और सतनामी भाईयों को आपस में लड़वाकर उनका नेतृत्व कमजोर किया। उन्होंने साहू समाज के लोगों को भी आपस में लड़वा कर उनके नेतृत्व को कमजोर किया।
ताम्रध्वज और धनेन्द्र का भी सियासी समीकरण समझें
पहले ताम्रध्वज के प्रत्याशी खिलाफ उन्होंने सामाजिक बंधुओं से षड़यंत्र कर हरवाया। लोकसभा में आदिवासी नेतृत्व को कमजोर करने आपस में लड़वाकर दीपक बैज को बस्तर, मोहन मरकाम को कांकेर और भगत, प्रेमसाय की टिकट
कटवाई । उन्हें मालूम था कि धनेन्द्र साहू महासमुन्द में अच्छे प्रत्याशी रहेंगे और ताम्रध्वज को दुर्ग से तो उन्होंने षड़यंत्रपूर्वक धनेन्द्र साहू टिकट नहीं लेने दी और राजेन्द्र साहू को दुर्ग से टिकट दिलवाई क्योंकि उन्हें मालूम था
कि राजेन्द्र साहू पहले कांग्रेस के खिलाफ लड़ चुके हैं, अरूण वोरा को भी निपटाये है, तो जीत नहीं पायेंगे और दूसरा ये होगा कि उसी नाम से ताम्रध्वज साहू को महासमुन्द भेज कर धनेन्द्र साहू को निपटा देगें, और उनको मालूम था
कि ताम्रध्वज महासमुन्द में बाहरी प्रत्याशी होंगे तो निपटेंगे साथ ही साथ वे जानते थे कि ताम्रध्वज साहू महासमुन्द जिले के प्रभारी थे, तो उन्होंने कभी किसी कार्यकर्ता का कभी कोई काम नहीं किया, न ही समाज के लोगों का कोई काम नहीं
किया । उन्होंने अपने भाषणों में कई बार यह कहा कि मैं मंत्री बना तो हर साहू मुझे अपना रिश्तेदार बताता है। गृहमंत्री थे पर किसी कार्यकर्ता का कोई भी मामला वापस नहीं करवाया।
धरा ही रह गया भूपेश बघेल का वादा
वैसे तो भूपेश बघेल ने वादा किया था कि सरकार बनते ही राजनैतिक मामले सब वापस होंगे। धनेन्द्र साहू की टिकट काटी, ताम्रध्वज साहू और राजेन्द्र साहू हार जायेंगें, क्योंकि बैरनपुर घटना में जो रवैय्या बघेल और ताम्रध्वज ने अपनाया
उससे साहू समाज को खून का घूंट पीना पड़ा। अर्थात साहू भाईयों का नेतृत्व कांग्रेस में वरिष्ठता के आधार पर खत्म । वरिष्ठ आदिवासी भाईयों सतनामी भाईयों का नेतृत्व भी वरिष्ठता के आधार पर खत्म।
अब कांग्रेस में वरिष्ठ नेता जो भविष्य में मुख्यमंत्री का दावेदार हो सकता है, उसमें आदिवासी साहू और सतनामी वर्ग को बड़ा नुकसान करने का जो षड्यंत्र भूपेश बघेल ने किया उसमें वो कामयाब हो गये।
क्यों हटाए जाएं भूपेश ये भी जानें
प्रदेश में ये तीनों समाज संख्या में बहुत मजबूत है और सम्मानीय भी है, वो इस षड़यंत्र को समझ गये हैं। ऊपर से भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री और साहू उप मुख्यमंत्री बना कर उन्हें सम्मान दिया है
तो उसका लाभ लोकसभा में भाजपा को सभी 11 सीटों पर मिला और कांग्रेस को नुकसान। लगातार आदिवासी, साहू, सतनामी नेतृत्व को आपस में लड़वाकर उनहें कमजोर करने का जो षड़यंत्र भूपेश बघेल ने किया है।
उसका दंड उन्हें देना चाहिये और पार्टी से उन्हें निष्कासित कर देना चाहिये क्योंकि उन्होंने महादेव, कोल और शराब स्कैम से पार्टी को बहुत बदनाम भी किया
और पूरी एआईसीसी को मैं चलाता हूँ बोलकर कर हाईकमान का भी अपमान किया है। इस पाप के लिए पार्टी को आदिवासी सतनामी और साहू समाज से
माफी भी मांगनी चाहिये तथा इस षड़यंत्र में भागीदारी के लिए चरणदास महंत को पार्टी से हटा देना चाहिये तथा टीएस सिंहदेव को परमानेंट रिटायरमेंट दे देना चाहिये।
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