
छेरछेरा पर्व आज, गांव-गांव में अन्न और वस्त्र दान की परंपरा.....
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छेरछेरा पर्व आज, गांव-गांव में अन्न और वस्त्र दान की परंपरा.....
रायपुर, छत्तीसगढ़ :छेरछेरा पर्व : आज छत्तीसगढ़ में धूमधाम से मनाया जा रहा है छेरछेरा पर्व, जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा के रूप में मनाया जाता है।
यह पर्व मुख्य रूप से गांवों में मनाया जाता है, जहां लोग एक-दूसरे से दान की उम्मीद करते हैं। छेरछेरा पर्व की यह परंपरा हर साल कार्तिक माह के अंत में आती है और विशेष रूप से दीपावली के बाद मनाई जाती है।
छेरछेरा पर्व के दिन, गांव-गांव में बच्चों की टोली घर-घर जाती है और घरों से अन्न, वस्त्र, और अन्य दान सामग्री मांगती है। यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है, और इसे धार्मिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
मान्यता है कि इस दिन दान देने से परिवार में अन्न और धन की कमी नहीं होती, और परिवार में समृद्धि का वास होता है। लोग इसे एक प्रकार का पुण्य कार्य मानते हैं, जो उनके जीवन में सुख और समृद्धि लाता है।
छेरछेरा पर्व पर विशेष रूप से बच्चों की टोली का बड़ा महत्व होता है। ये छोटी-छोटी टोली घर-घर जाकर दान मांगती हैं और साथ में छेरछेरा गीत गाती हैं। यह गीत गांव-गांव में गूंजता है और बच्चों का उत्साह और आस्था का प्रतीक बनता है।
ये गीत आमतौर पर भक्ति और दान की भावना को दर्शाते हैं। इस दिन बच्चों द्वारा गाए गए गीतों में दान देने के लिए आशीर्वाद और शुभकामनाएं दी जाती हैं।
छेरछेरा गीत खासतौर पर इस दिन के माहौल को जीवंत बनाता है। गीतों में बच्चे और गांव के लोग इस पर्व की महत्वता का जिक्र करते हैं और साथ ही दान देने वालों को शुभकामनाएं देते हैं।
यह गीत सभी उम्र के लोगों के लिए खुशी और आशीर्वाद का संदेश होता है। हर गली, हर मुहल्ले में यह गीत गूंजता है और ग्रामीणों को एकजुट करता है।
इस पर्व पर खासकर अन्न और वस्त्र दान की परंपरा निभाई जाती है। घर-घर जाकर बच्चे दान मांगते हैं, जिसमें अन्न, चावल, गेहूं, तेल, और कभी-कभी वस्त्र भी दान में दिए जाते हैं।
यह दान सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि सामूहिकता और एकता का प्रतीक है। इस दिन दान करने से हर किसी को अपने परिवार की समृद्धि और खुशहाली की उम्मीद होती है।
छेरछेरा पर्व को केवल एक धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में देखा जाता है। यह पर्व ग्रामीण समाज में एकजुटता, सहयोग और सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देता है।
इस दिन घरों में खुशहाली होती है और गांव के लोग एक-दूसरे से संपर्क बढ़ाते हैं। यह पर्व विशेष रूप से छोटे गांवों और कस्बों में मनाया जाता है, जहां लोग मिलकर इस दिन को खुशियों के साथ मनाते हैं।
आज के आधुनिक समाज में, जहां डिजिटल और शहरीकरण का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, फिर भी छेरछेरा पर्व अपनी पुरानी परंपराओं के साथ जीवित है। अब यह पर्व शहरों में भी धीरे-धीरे लोकप्रिय होता जा रहा है।
बच्चे अब गांवों के अलावा शहरी इलाकों में भी इस परंपरा को निभाते हैं और इसे सामाजिक एकता और साझा संस्कृति के रूप में मनाते हैं।
छेरछेरा पर्व बच्चों और परिवारों के बीच प्रेम, सामूहिकता और आस्था को बढ़ावा देने वाला पर्व है। यह दिन सभी के लिए खुशियों और समृद्धि का संदेश लेकर आता है।
दान की परंपरा केवल एक धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि यह समाज को जोड़ने और सभी को एकजुट करने का एक तरीका बन चुका है।
छेरछेरा पर्व न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर है जो हमें अपने पूर्वजों की परंपराओं को बनाए रखने और साझा संस्कृति के महत्व को समझने का अवसर देता है। इस पर्व के माध्यम से हम दान और परस्पर सहयोग की भावना को आगे बढ़ाते हैं
और हर घर में खुशहाली और समृद्धि का संचार करते हैं। इस दिन की जो खास बात है, वह है बच्चों की टोली, जो हर गली, हर घर में जाकर दान मांगते हुए छेरछेरा गीत गाते हैं और एक अद्भुत उत्सव का हिस्सा बनाते हैं।
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