
Cataract Surgery Tragedy in Dantewada Leaves 10 People Blind
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Cataract Surgery Tragedy in Dantewada Leaves 10 People Blind
दंतेवाड़ा जिला अस्पताल से चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जहां मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद प्रबंधन की लापरवाही के चलते 10 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। अस्पताल की इस चूक ने इन निर्दोष लोगों की दीवाली को अंधेरे में बदल दिया। अब यह मामला राजनीतिक गलियारों में भी तूल पकड़ रहा है, विपक्ष ने सरकार पर हमला बोलते हुए कड़ी आलोचना की है।
बीते मंगलवार, 18 अक्टूबर को दंतेवाड़ा जिला अस्पताल में 20 मरीजों का मोतियाबिंद ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन के अगले ही दिन 10 मरीजों की आंखों में संक्रमण की शिकायतें आईं, जिनमें खुजली और पस आने जैसी समस्याएं थीं। मामले के उजागर होने पर प्रशासन ने तुरंत सभी प्रभावित मरीजों को रायपुर के मेकाहारा अस्पताल में शिफ्ट किया। रायपुर में मरीजों का दोबारा ऑपरेशन किया गया, लेकिन अब 10 से अधिक मरीजों की रोशनी लौटने की संभावना कम है। कुछ मामलों में तो आई बॉल हटाने की नौबत भी आ सकती है। फिलहाल, सभी मरीजों का उपचार मेकाहारा में जारी है, और स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने अस्पताल जाकर हालचाल भी जाना, साथ ही दोषियों पर सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि “BJP सरकार से छत्तीसगढ़ नहीं संभल रहा है। जनता हर जगह पुलिस और प्रशासन के खिलाफ है, और अब तो साधारण मोतियाबिंद ऑपरेशन में भी लोगों की रोशनी जा रही है।” कांग्रेस ने इस मामले की जांच के लिए एक दल गठित किया है और सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं।
राज्य सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जिला अस्पताल की नेत्र सर्जन डॉ. गीता नेताम सहित नेत्र सहायक और एक स्टाफ नर्स को निलंबित कर दिया है। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कांग्रेस पर इस मामले को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगाया है और कहा कि स्वास्थ्य विभाग अपनी ओर से हर संभव कार्यवाही कर रहा है।
गौरतलब है कि 2011 में भी छत्तीसगढ़ के दो सरकारी शिविरों में ऐसी ही लापरवाही के कारण कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। इसे ‘आंखफोड़वा कांड’ का नाम दिया गया था, जिसमें बालोद, बागबाहरा, और राजनांदगांव-कवर्धा के लोग पीड़ित हुए थे। इस मामले में भी कई अधिकारियों और सर्जनों पर कार्रवाई की गई थी।
सवाल उठता है कि ऐसी घटनाओं से आखिर कब तक लोगों को अंधेरे का सामना करना पड़ेगा? और क्या जिला अस्पतालों की अनदेखी का शिकार आम जनता यूं ही होती रहेगी?
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