चेन्नई। कछुओं का कब्रिस्तान बना चेन्नई सागर तट : भारत के पूर्वी तट पर बड़ी संख्या में मरे हुए समुद्री कछुओं की लाश मिलने से पर्यावरणविद खासे परेशान हैं। आंकड़ों के मुताबिक़ चेन्नई में अब तक 600 से ज्यादा कछुओं की मौत हो चुकी है। पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोग और अधिकारी इस त्रासदी को रोकने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। तो वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि ज्यादातर कछुओं की मौत मछली पकड़ने वाले जाल में फंसने से हो रही हैं। इस कारण इलाके में स्थानीय लोगों के बीच काफी नाराजगी देखि जा रही है।
कछुओं का कब्रिस्तान बना चेन्नई सागर तट : ड्रोन से दिखे अंडे देते दुर्लभ कछुए
कुछ दिनों पहले चेन्नई के सागर तटों पर करीब 50 ऑलिव रिडले कछुओं के शव पाए गए। इनमें से कई मादाएं थीं, जिनके शरीर में अभी भी सैकड़ों अंडे मौजूद थे। कहने को तो ये इन कछुओं के लिए यह प्रजनन का मौसम है। हाल के दिनों में चेन्नई और चेंगलपट्टू के समुद्री किनारों पर लगभग 1,000 कछुओं की मृत्यु हो चुकी है, जो अब तक का सबसे बड़ा नुकसान है। ताजा घटना में मिले 50 कछुओं में से 31 के शव बेजेंट नगर से नीलंकराई के बीच पाए गए, जो हाल ही में मरे हुए प्रतीत हो रहे थे।
स्टूडेंट्स सी टर्टल कंजर्वेशन नेटवर्क के मुताबिक, मरीना बीच से नीलंकराई तक अब तक 360 कछुओं की मौत हो चुकी है। वहीं, ट्री फाउंडेशन ने नीलंकराई से आलमपराईकुप्पम के बीच करीब 500 मौतें दर्ज की हैं। इसके अलावा, पुलिकट और तिरुवोट्टियूर समुद्र तटों से भी कछुओं की मौत की खबरें आई हैं।
हालात और भी अभी चिंताजनक हैं क्योंकि बेजेंट नगर और नीलंकराई की हैचरियों में अब तक 20 से भी कम कछुओं के घोंसले दर्ज हुए हैं। कछुओं की यह घटती संख्या समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा है।
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चेंगलपट्टू के मत्स्य निरीक्षक पी. निवेधन के मुताबिक कछुओं के प्रजनन केसीजन में, 5 नॉटिकल माइल (समुद्र में दूरी मापने का पैमाना) के अंदर ट्रॉलिंग पर रोक है। इसे लागू करने के लिए प्रतिदिन गश्त की जा रही है। ऐसे में “अगर प्रतिबंधित क्षेत्र में कोई ट्रॉलर पाया गया, तो उसकी ईंधन सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी और मछली पकड़ने का लाइसेंस भी ख़त्म कर दिया जाएगा। ”
तो वहीं मछुआरों का कहना है कि बढ़ती लागत और बेहद मुश्किल हालात के कारण उनके लिए दूर समुद्र में मछली पकड़ना क्रिटिकल वर्क हो गया है। चेन्नई के 52 वर्षीय मछुआरे एमई रघुपति ने तो यहां तक कहा कि – “हम कछुओं को पूजते हैं, उनकी मौत हमें भी दुखी करती है, लेकिन हमें भी अपने परिवारों का पेट पालना पड़ता है। ”
रघुपति के मुताबिक , सरकार की बनाई गई मछली पकड़ने की टेक्निक और जाल 1960 के दशक से अपडेट ही नहीं हुए हैं “अगर सरकार नई तकनीक देती है, तो हम खुशी-खुशी उसका प्रयोग करेंगे। ”
एक ओर मछुआरे के. भारती का कहना है कि बंगाल की खाड़ी में मछलियों की संख्या बीते दशकों में तेजी से कम हुई है। “गरम पानी और अत्यधिक मछली पकड़ने से मछलियां समाप्त हो रही हैं, अगर कृत्रिम कोरल रीफ बनाए जाएं, तो यह कछुओं और मछुआरों दोनों ले लिए फायदेमंद साबित होगा । ”
सिर्फ कागजों पर समुद्री कछुओं की सुरक्षा
2016 में सरकार के मत्स्य विभाग ने कछुओं के प्रजनन के दौरान मछुआरों को तट से 5 नॉटिकल माइल दूर जाकर मछली पकड़ने का आदेश दिया था। साथ ही, कछुओं को जाल से बचाने के लिए “टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस” लगाने की बात भी हुई थी,पर हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ।
चेन्नई के वन्यजीव अधिकारी मनीष मीणा का कहना है कि , “हम कछुओं को बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं मछुआरों को जागरूक किया जा रहा है कि अगर कछुए जाल में फंस जाएं, तो उन्हें छोड़ दें। रघुपति सुझाव देते हैं कि जाल में कैमरे लगाए जाएं या ऐसा समाधान निकाला जाए जो मछलियों की पकड़ को प्रभावित ना करे।
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ट्री फाउंडेशन की सुप्रजा धारिणी बताती हैं, कि “अगर मछली पकड़ने के तरीके टिकाऊ बनाए जाएं, तो यह कछुओं और मछुआरों दोनों के लिए फायदेमंद होगा।”
भारत के नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने चेतावनी दी है कि अगर नियमों का पालन नहीं हुआ, तो कछुओं के प्रजनन के दौरान मछली पकड़ने पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सकती है।
तो वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि समुद्री कछुओं और मछुआरों के हितों में संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। जब तक टिकाऊ उपाय लागू नहीं किए जाते, तब तक यह संकट गहराता रहेगा।
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