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CG News : छत्तीसगढ़ के गढ़बेंगाल में रहने वाले काष्ठ कला के कलाकार पड़ीराम मंडावी का नाम इस साल के पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। आदिवासी संस्कृति को समर्पित और काष्ठ कला में अपनी अद्भुत प्रतिभा दिखाने वाले मंडावी ने अपने जीवन को कला के माध्यम से सजाया और संवारा है।
पड़ीराम मंडावी ने बचपन से ही कला की दुनिया में कदम रखा। आदिवासी संस्कृति और गोटूल जीवन से जुड़े हुए मंडावी ने काष्ठ कला, कार्विंग आर्ट, और बांसुरी आर्ट जैसी दर्जनों पारंपरिक कलाओं में महारत हासिल की है। उनकी कला न केवल आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करती है, बल्कि इसे नए आयाम भी देती है।
पड़ीराम मंडावी का परिवार जिला मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर गढ़बेंगाल में रहता है। उनके परिवार के सदस्य, खासकर उनके बच्चे, भी काष्ठ कला में सक्रिय हैं और उनके साथ लकड़ी से अद्भुत कलाकृतियां बनाते हैं। उनके परिवार की यह परंपरा न केवल कला को जीवित रखती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा भी देती है।
पड़ीराम मंडावी ने काष्ठ कला के माध्यम से आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखा है। उनकी कलाकृतियों में आदिवासी जीवन, गोटूल व्यवस्था, और प्रकृति के साथ सामंजस्य को दर्शाया गया है। उनके द्वारा बनाई गई बांसुरी और लकड़ी की कलाकृतियां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा पा चुकी हैं।
पड़ीराम मंडावी का नाम इस साल पद्मश्री पुरस्कार में शामिल किया गया है, जो उनकी कला और संस्कृति के प्रति समर्पण को मान्यता देता है। यह सम्मान न केवल उनके लिए बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ और आदिवासी समुदाय के लिए गर्व का क्षण है।
पड़ीराम मंडावी ने अपने जीवन को आदिवासी कला और संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया है। उनके योगदान से काष्ठ कला और आदिवासी कलाओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है।
पड़ीराम मंडावी का पद्मश्री सम्मान में चयन उनकी मेहनत, समर्पण और कला के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है। यह सम्मान उनकी कला यात्रा को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा और आदिवासी संस्कृति को और अधिक पहचान दिलाएगा। जय कला, जय संस्कृति!
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