
भोपाल गैस त्रासदी 40 साल बाद भी सवालों का सन्नाटा और दर्दनाक यादें
भोपाल : दूसरे और तीसरे दिसंबर 1984 की रात, जब भोपाल में एक दर्दनाक और काले हादसे ने हजारों लोगों की जिंदगी छीन ली, यह घटना इतिहास में दर्ज हो गई। यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कारखाने से रिसी मिथाइल
आइसोसाइनेट (MIC) गैस ने भोपाल और आसपास के इलाकों को मौत और तबाही की चपेट में ले लिया। इस त्रासदी में 5,474 लोग मारे गए और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। आज इस हादसे को 40 साल हो गए हैं, लेकिन भोपाल और पूरी दुनिया इसे कभी नहीं भूल पाएगी।
यह कारखाना कीटनाशकों के उत्पादन के लिए मिथाइल आइसोसाइनेट का उपयोग करता था, और सुरक्षा मानकों की अनदेखी और रखरखाव में लापरवाही के चलते एक बड़े गैस रिसाव ने कई जानें ले लीं।
गैस के संपर्क में आने से लोगों को सांस लेने में कठिनाई, जलन, अंधापन और फेफड़ों की समस्या होने लगी। इस कष्ट को भोगने वालों के साथ काम कर रहे संगठनों ने बताया कि गैस से प्रभावित लोगों में बीमारियों का प्रसार गैर प्रभावितों
की तुलना में कहीं अधिक तेजी से हुआ। संभावना ट्रस्ट क्लिनिक द्वारा 16 वर्षों में एकत्रित किए गए आंकड़ों के मुताबिक, गैस से प्रभावित 16,305 मरीजों की हालत काफी बिगड़ी है।
भोपाल गैस त्रासदी की तुलना अक्सर हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों से की जाती है, क्योंकि यह घटना भी मानवता के लिए एक काला अध्याय बन गई। इस त्रासदी के बाद भी हजारों परिवार इसके दंश से जूझ रहे हैं, और कई सवाल आज भी अनुत्तरित हैं।
कई सवाल अब भी अनसुलझे हैं
- 40 साल बाद भी इस त्रासदी पर पर्दा क्यों डाला गया?
- वैज्ञानिक स्तर पर इस आपदा की जांच क्यों नहीं की गई?
- मिथाइल आइसोसाइनेट के अलावा कौन से अन्य रसायन जिम्मेदार थे?
- यूनियन कार्बाइड के दावों को झूठा साबित होने के बावजूद जेनेटिक म्यूटेशन पर शोध क्यों नहीं किया गया?
- पीड़ितों को मुआवजे का निर्धारण किस आधार पर हुआ?
- भारतीय चिकित्सा परिषद (ICMR) जैसे संस्थानों ने इस पर कोई शोध क्यों नहीं किया?
- सरकारों ने इस घटना के बाद कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए?
जब छोटे-छोटे हादसों के लिए आयोग बनाए जाते हैं और जांच होती है, तो दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के बाद ऐसा क्यों नहीं हुआ? सरकारों और संस्थानों ने क्या कदम उठाए? इन सवालों का जवाब आज भी बाकी है।
हालांकि, अब जनप्रतिनिधि गैस पीड़ितों के पुनर्वास और उनके उत्थान के लिए दावे कर रहे हैं, वहीं विपक्ष सवाल खड़ा कर रहा है कि आखिर इन सवालों का सही जवाब क्यों नहीं दिया गया?