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Chhattisgarh News : बबिता बाबा, ग्राम कुँरा, धरसीवां की एक प्रमुख धार्मिक और आध्यात्मिक हस्ती हैं, जो प्रतिवर्ष तीन दिन की समाधि लेती हैं। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है, जिसमें बबिता बाबा अपनी समाधि के माध्यम से अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
रायपुर जिले के धरसीवां क्षेत्र के कुँरा गांव में एक अनोखी घटना देखने को मिली, जहां बबीता बाबा ने तीन दिन की समाधि ली है। बबीता बाबा ने अपनी समाधि लगभग पांच फीट गहरी ज़मीन में बनाई है। यह घटना न केवल गाँव के निवासियों के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण विषय बन गई है।
बबीता बाबा का यह कदम अपने अनुयायियों के बीच एक गहरी आस्था और श्रद्धा को दर्शाता है। उनके अनुयायी मानते हैं कि उनकी समाधि में विशेष शक्तियाँ हैं और वे समाज के कल्याण के लिए कार्य कर सकते हैं।
बबीता बाबा ने यह समाधि लेते हुए यह तय किया कि वह 18 दिसंबर को, गुरू घासीदस जयंती के अवसर पर समाधि से बाहर आएंगे। गुरू घासीदस जयंती एक महत्वपूर्ण अवसर है, जब बाबा के अनुयायी उन्हें श्रद्धा के साथ मानते हैं। इस दिन बबीता बाबा समाधि से बाहर आने के बाद समाज के लोगों से मिलेंगे और उनके साथ संवाद करेंगे।
बबीता बाबा न केवल धार्मिक पहचान रखते हैं, बल्कि समाज में एक गहरी सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका निभाते हैं। उनके अनुयायी उन्हें एक मार्गदर्शक मानते हैं, जो न केवल आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि समाज में समस्याओं के समाधान में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
गांव के लोग इस घटना से प्रभावित हैं और उनके बीच बातचीत के विषय बने हुए हैं। स्थानीय पंचायत सदस्य और अन्य वरिष्ठ लोग बाबा की समाधि प्रक्रिया में रुचि और श्रद्धा दिखा रहे हैं। उनके अनुयायी उन्हें समाज में सकारात्मक परिवर्तन का प्रतीक मानते हैं।
समाधि की प्रक्रिया:
बबिता बाबा समाधि लेने से पहले अपने अनुयायियों को उपदेश देती हैं और फिर निर्धारित स्थान पर समाधि में बैठ जाती हैं। समाधि के दौरान, उनके अनुयायी पंथी नृत्य, भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से वातावरण को पवित्र रखते हैं। समाधि के तीन दिनों के बाद, बबिता बाबा पुनः बाहर आती हैं और अपने अनुयायियों से मिलकर उन्हें आशीर्वाद देती हैं।
समाधि के महत्व:
यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज में एकता और भाईचारे को भी बढ़ावा देती है। समाधि के दौरान, ग्रामवासी एकजुट होकर धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, जिससे सामाजिक
समरसता को बढ़ावा मिलता है।
समाधि से बाहर आने की प्रक्रिया:
समाधि से बाहर आने के बाद, बबिता बाबा अपने अनुयायियों से मिलती हैं और उन्हें आशीर्वाद देती हैं। इस अवसर पर, ग्रामवासी पंथी नृत्य, भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से वातावरण को पवित्र रखते हैं।
समाधि के दौरान की गतिविधियाँ:
समाधि के दौरान, ग्रामवासी पंथी नृत्य, भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से वातावरण को पवित्र रखते हैं। यह गतिविधियाँ न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि समाज में एकता और भाईचारे को भी बढ़ावा देती हैं।
समाधि के बाद की गतिविधियाँ:
समाधि से बाहर आने के बाद, बबिता बाबा अपने अनुयायियों से मिलती हैं और उन्हें आशीर्वाद देती हैं। इस अवसर पर, ग्रामवासी पंथी नृत्य, भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से वातावरण को पवित्र रखते हैं।
इस परंपरा के माध्यम से, बबिता बाबा अपने अनुयायियों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करती हैं और समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देती हैं।