
Asian News special program : संतुलन का समीकरण : मुफ्त में मिलने वाली हर चीज रेवड़ी नही होती, सभी को मिले मूलभूत सुविधाएं
Asian News special program : फ्री-बिज कितना असरदार, कितना नुकसानदायक” विषय पर परिचर्चा का आयोजन
Asian News special program : रायपुर देश में इन दिनों ‘रेवड़ी कल्चर’ काफी चर्चा में है। चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे कर देती हैं। इसे ही राजनीतिक भाषा में फ्रीबीज या रेवड़ी कल्चर कहा जाता है। लेकिन ये रेवड़ी कल्चर की शुरुआत कैसे हुई? इसका राज्यों की आर्थिक सेहत पर क्या असर पड़ता है? चुनावों पर ये मुफ्त की रेवड़ियां कितना असर डालती हैं?
Asian News special program : क्या सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाएं योजनाएं जैसे फ्री बिजली, फ्री पानी या चुनाव के दौरान लैपटॉप, कैश या दूसरी चीजों को दिए जाने की घोषणा…बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 जुलाई को इस शब्द का इस्तेमाल किया था। बिना किसी का नाम लिए उन्होंने कहा था कि कुछ पार्टियां देश में ‘रेवड़ी कल्चर’ को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं।
पीएम ने कहा कि हमें मिलकर रेवड़ी कल्चर की सोच को हराना है, ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है इसके बाद देश में एक बहस छिड़ गई कि मुफ्त योजनाओं का दायरा क्या हो। कौन-सी योजनाएं या चुनावी घोषणाएं इसमें शामिल हो सकती हैं या नहीं हो सकती हैं।
बाद में उनकी पार्टी ही चुनाव के समय कई घोषणाएं और वादे किए। जिस रेवड़ी कल्चर की आलोचना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मंचो से की, जिसे सुप्रीम कोर्ट और निर्वाचन आयोग ने भी आड़े हाथ लिया, लेकिन इसके बाद भी चुनाव में सभी सियासी दल बढ़-चढ़ कर कर इसका इस्तेमाल किए हैं
इस बार एशियन न्यूज के खास कार्यक्रम संतुलन का समीकरण में “फ्री-बिज कितना असरदार, कितना नुकसानदायक” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गाय और लोगों की राय ली गई। इस मुद्दे पर बात रखने के लिए विभिन्न वर्ग के लोग शामिल हुए और प्रमुखता से अपनी बात रखी।
इस अवसर पर एशियन न्यूज के प्रधान संपादक सुभाष मिश्रा ने कहा कि चुनाव आते हैं ऐसे मुद्दों पर बहुत जोर शोर से चर्चा होने लगती है। देश में चुनाव जारी है और 4 जून को रिजल्ट भी आने वाला है। लेकिन चुनाव से पहले सभी पार्टियां जो वायदे और दावे करती है क्या वह रेवड़ी कल्चर नहीं है।
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खुद प्रधानमंत्री अपने भाषणों में इस रेवड़ी कल्चर को देश के लिए नुकसानदायक परंपरा बता चुके हैं। लेकिन चुनाव के समय सभी राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे और दावे भी करती हैं क्या यह वादे और दावे रेवड़ी कल्चर के अंतर्गत नहीं आते हैं।
वहीं जो देश में टैक्स पेयर हैं वे लोग इसका विरोध भी करते हैं क्योंकि उनका मानना है की वोट लेने के लिए राजनीतिक पार्टी ऐसी बाते करते हैं लेकिन हमलेगों के लिए क्या है इन्ही सब चीजों पर विस्तार से चर्चा करने के लिए इस विषय को रखा गया।
वहीं अशोक चंद्रवानसी ने कहा कि फ्री बीच यानि की रेवड़ी कल्चर का जिक्र होता रहा है। लेकिन 1947 में जब हमारा देश आजाद हुआ था उसे समय बहुत कम पार्टियां थी आज जो संतुलन का समीकरण में बैलेंस करने की बात हो रही है इसमें तरह तरह की पार्टियां है
अलग-अलग क्षेत्र में जो भाषा को लेकर विकास को लेकर और वैचारिकता को लेकर जो परिया बनना शुरू हुआ उसके कारण से यह रेवड़ी कल्चर की प्रथा शुरू हुई है और आज इतना ही कर रहा है।
व्यापारी संघ से राजेंद्र पटवानी ने कि मैं व्यापारी हूं कई सालों से व्यापार कर रहे हैं इसमें हम लोग किसान से संबंधी चीज की खरीद बिक्री करते हैं
इसमें मैं किसानों के लिए यह कह सकता हूं कि किसान पहले से ज्यादा समृद्धशाली हुआ है उसमें खरीदारी करने की क्षमता बड़ी है और आज गूगल पेय और फोन पेय जैसे टेक्नोलॉजी इस्तेमाल कर रहे हैं।
क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के संयोजक तुहिन देव ने कहा कि फ्री बीज टर्म है से मैं इतेफक नहीं रखता हूं यह टर्म 2010 के बाद भारत में जो कॉर्पोरेट घराना या धनात्मक लोग हैं वह इस शब्द या संस्कृति की शुरूआत किया। वर्तमान में भारत में कॉरपोरेट टैक्स सबसे कम कर दिया गया है। यह लोक कल्याण कारी गणराज्य है।
जब लोक कल्याणकारी गणराज्य में 80 फ़ीसदी जनता है किसान मजदूर, मेहनतकश झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोग, जो हाशिए पर रहते हैं इनके लिए शिक्षा स्वास्थ्य या जीवन धारण की चीज मुहैया करवाना ये सारी चीजें फ्री बीज नहीं हो सकती है।
तेज राम विरोधी ने कहा लोक कल्याणकारी योजनाएं चलाई जाती थी जो पहले लोगों को दिया जाता था उसका प्रचार प्रसार नहीं किया जाता था लेकिन आज यह देखा जाता है कि कोई मुफ्त में सिलेंडर दे रहा है तो इसका इतना प्रचारित प्रसारित किया जाता है
कि जितना सिलेंडर में पैसा नहीं लगा, उससे ज्यादा उसके प्रचार प्रसार में लगा दिया जाता है आज शिक्षा स्वास्थ्य और परिवहन, ट्रांसपोर्ट जैसे कई मूलभूत सुविधाएं देने का काम सरकार की है लेकिन ये व्यवस्था देने में सरकार असफल है…
रोहित पंजवानी ने कहा कि मैं एक व्यापारी होने के नाते यह कह सकता हूं कि जो फ्री की चीज दी जा रही है वह सही मायने में सही है या गलत भी है क्योंकि आज जिस तरीके से चुनाव के समय मुफ्त मेरे बढ़िया बाटी जाति है उसका लोग एहतराम नहीं करते हैं क्योंकि आजकल लोग करना चाहते हैं ज्यादातर लोग किसी और चल जाते हैं वर्तमान में जितना जरूरत है उतना ही लोगों को देना चाहिए।
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लव बंसल ने कहा की अगर फ्री बीज की बात करें तो लोगों को यह समझना होगा कि जो लोगों को फ्री में मिल रहा है उसका सही उपयोग करें। क्योंकि जिस तरीके से लोगों को मुफ्त में अनाज, शिक्षा और स्वास्थ्य की सेवाएं दी जाती है उसका लोग सही से उपयोग नहीं करते हैं वहीं एक ओर लोग मुफ्त के चीजों के आदि हो जाते हैं।
व्यापारी चेतन पंज ने कहा कि फ्री की चीज़े नहीं देनी चाहिए जिससे लोग आलसी हो जाए। आज जिस तरीके से चुनाव के समय फ्री में बाटे जाते हैं उसका मैं विरोध करता हूं क्योंकि ऐसी चीजे लोगों को आलसी और निकम्मा बना रहा है।
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कर्मचारी और आप नेता विजय झा ने कहा गरीब मांगे तो भीख और अमीर मांगे तो चंदा है…ये तो देश की विडंबना है कि आज लोग देश में राजनीतिक पार्टियों एक दूसरे पर सिर्फ आरोप लगा रहे हैं सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्री बीच यानी कि मुफ्त की रेवड़ी पर सवाल उठाए थे
लेकिन वह खुद छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी महिलाओं को मातृवंदन योजना के तहत 1000 देने की बात कही और लोकसभा चुनाव तक सभी के खातों में दिया अभी क्या यह मुफ्त की रेवड़ी नहीं है लेकिन अगर किसी गरीब के लिए शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार के लिए कुछ दिए जाते हैं वह मुफ्त की रेवड़ी नहीं है।
उन्होंने कहा कि जितने भी सरकार आती है वह एक दूसरी पर आरोप लगाती है लेकिन शासन या प्रशासन में जो लोग होते हैं वह राजनीतिक चश्मे से देखकर कार्रवाई करते हैं हम उन्हें यह देखा जाता है कि चुनाव के समय भाजपा की सरकार रहती है तो छापी कांग्रेस के नेताओं के घर पड़ता है वहीं कांग्रेस की सरकार होती है तो भाजपा के नेताओं के यहां से छपी होती है तो यह जब तक राजनीतिक चश्मे से कानून व्यवस्था चलेगी तब तक किसी का भलाई नहीं होगा इसको बदलना होगा।
कन्हैया गुप्ता ने कहा कि इन दिनों जो राजनीति पार्टियां फ्री की रेवड़ियां बांटी जा रही है उसपर कहीं तो रोक लगना चाहिए। जो आम जन की मूल भूत सुविधाएं हैं बस वही दिया जाए।
वकील आयुष गुहा ने कहा फ्री बीज की अगर बात करें तो इसके दो पहलू हैं इसमें लोगों तक फ्री की योजनाएं पहुंच रही है वहीं कई लोगो तक नहीं भी पहुंच रहे है। इसके लिए भी लॉ है अधिकार है जिसके तहत लोग अपनी हक की मांग कर सकते हैं संविधान में इसके लिए अधिकार भी दिए गए हैं
लेकिन इसके लिए क्या लोग जागरूक हैं। तो आज जरूरत है लोगों को जागरूक करने की। आज जिस तरीके सो लोगों से टैक्स लेकर लोगों यूं अपनी राजनीति लाभ के लिए फ्री में बांटा जा रहा है यह गलत है और लोगों को इसपर सवाल उठना चाहिए…आज किसान इतना भी कमजोर नहीं है कि शासन पर किसी चीज के लिए निर्भर हो लेकिन जरूरत है कि किसानों को उनका उचित मूल्य मिले
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