AIIMS भोपाल ने बच्चों में ब्लड कैंसर के उपचार में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। संस्थान ने हाल ही में एक सात वर्षीय बच्ची का सफल हापलो-आइडेंटिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया है। यह जटिल प्रक्रिया बाल्य रक्त कैंसर (रिलेप्स्ड एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया) से पीड़ित बच्ची पर की गई। इस उपलब्धि के साथ, एम्स भोपाल बच्चों में इस तरह के कैंसर उपचार की क्षमता रखने वाला एम्स दिल्ली के बाद दूसरा अस्पताल बन गया है।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जटिल प्रक्रिया
एम्स भोपाल में यह ट्रांसप्लांट चिकित्सा ऑन्कोलॉजी और हीमेटोलॉजी विभाग के विशेषज्ञों, डॉ. गौरव ढींगरा और डॉ. सचिन बंसल, के नेतृत्व में सफलतापूर्वक किया गया। बच्ची का इलाज बाल्य ऑन्कोलॉजी विभाग के डॉ. नरेंद्र चौधरी की देखरेख में हो रहा था।
भाई बना डोनर
ट्रांसप्लांट के लिए मरीज के भाई को डोनर के रूप में चुना गया, जो आधे एचएलए (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) से मेल खाते थे। हापलो-आइडेंटिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट प्रक्रिया सामान्य बोन मैरो ट्रांसप्लांट से कहीं अधिक जटिल होती है।
एम्स भोपाल की नई उपलब्धि
यह उपलब्धि एम्स भोपाल के लिए एक बड़ी सफलता है। इससे पहले ऐसी प्रक्रिया केवल एम्स दिल्ली में की गई थी। अब एम्स भोपाल भी बच्चों में रक्त कैंसर के उन्नत और जटिल इलाज के लिए अग्रणी संस्थान बनकर उभरा है।
उपचार से उम्मीदों का संचार
इस तरह की जटिल चिकित्सा प्रक्रिया से न केवल कैंसर पीड़ित बच्चों के जीवन में सुधार होगा, बल्कि देश में बाल्य ऑन्कोलॉजी के क्षेत्र में एम्स भोपाल की साख भी बढ़ेगी। यह उपलब्धि बच्चों के कैंसर उपचार में एक नई उम्मीद लेकर आई है।






