अहमदाबाद। कॉन्सर्ट इकोनॉमी का भारत में भविष्य : दुनिया में म्यूजिक कॉन्सर्ट इकोनॉमी बड़ी तेजी से विकसित हो रही है।भारत में भी बीते एक साल के दौरान इंटरनेशनल स्टार्स के म्यूजिक कॉन्सर्ट का चलन बढा है। हाल ही में 25 जनवरी को अहमदाबाद में हुए “कोल्डप्ले कॉन्सर्ट” ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। दो दिन के इस इवेंट में तकरीबन ढाई लाख लोग नरेंद्र मोदी स्टेडियम में लाइव परफॉरमेंस देखने जुटे थे। इस इवेंट ने तो अमेरिकी सिंगर जॉर्ज स्ट्रेट के टेक्सास में आयोजित शो में जुटे 1.10 लाख लोगों का रिकॉर्ड भी ब्रेक कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मंगलवार को अहमदाबाद का उदाहरण देकर देश में कॉन्सर्ट इकोनॉमी को बढ़ावा देने की अपील की है। उन्होंने कहा कि आजकल दुनियाभर के बड़े स्टार्स भारत आना चाहते हैं, ऐसे में प्राइवेक्ट सेक्टर के साथ-साथ राज्य सरकारें भी इसके लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराएं।
कॉन्सर्ट इकोनॉमी का भारत में भविष्य : कितना बड़ा है कॉन्सर्ट का कारोबार
दुनिया के कई देशों की इकोनॉमी में लाइव म्यूजिक कॉन्सर्ट का बड़ा योगदान है और इनमें सिंगापुर, अमेरिका और साउथ कोरिया प्रमुख हैं। वैश्विव तौर पर देखा जाए तो अकेले साल 2023 में ही लाइव कॉन्सर्ट से दुनियाभर में तकरीबन 31 बिलियन डॉलर की कमाई हुई है। आने वाले वर्षों में इसमें बड़ा उछाल देखने को मिलेगा। उदाहरण के तौर पर हाल के दिनों में पॉप स्टार टेलर स्विफ्ट के कॉन्सर्ट टूर से उत्तरी अमेरिका की इकोनॉमी को 4.6 बिलियन डॉलर और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में एक बिलियन डॉलर की जम्प लगाईं है।
भारत में इस सेक्टर का बेहतरीन स्कोप है और कॉन्सर्ट में उमड़ने वाली भीड़ इसकी गवाही भी दे रही है। हाल ही में बैंक ऑफ बड़ौदा की ओर से एक रिपोर्ट तैयार की गई. जिसमें कॉन्सर्ट इकोनॉमी के भविष्य के बारे में विस्तार से बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार म्यूजिक कॉन्सर्ट के टिकट पाने के लिए ही बीते तीन महीने में लोगों के 700से लेकर 900 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इन कॉन्सर्ट में न सिर्फ स्टार्स फीस के जरिए कमाई करते हैं बल्कि टूरिज्म बढ़ाने और रोजगार के अवसर पैदा करने नें भी इनकी अहम् भूमिका है। अब अगर बीते तीन महीने की ही बात करें तो ऐसे लाइव कॉन्सर्ट पर 1600 से 2000 करोड़ खर्च होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
टिकट के अतिरिक्त किन सेक्टर्स में होगी कमाई
वैसे तो बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि कॉन्सर्ट के जरिए हॉस्पिटैलिटी सेक्टर से लेकर ट्रांसपोर्ट और खुदरा कारोबार को भी नई उड़ान मिलने की संभावना है। इसके अलावा इन कॉन्सर्ट में जाने वाले लोग सिर्फ टिकट खरीदकर टैक्स नहीं दे रहे हैं बल्कि इससे होटल और रेस्टोरेंट का जीएसटी कलेक्शन भी आसमान छू रहा है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इन कॉन्सर्ट के जरिए दुनिया को न सिर्फ भारत की सांस्कृतिक धरोहर को जानने का मौका मिलेगा, बल्कि विदेशी पर्यटक भी देश की इकोनॉमी को मजबूत करने में अपना योगदान देंगे।
ग्लोबल कॉन्सर्ट में भारत नया खिलाड़ी
वैसे तो ग्लोबल कॉन्सर्ट को देखते हुए भारत फिलहाल इस सेक्टर में नया खिलाड़ी जरूर है, मगर उसका भविष्य उज्जवल नजर आता है। रिपोर्ट के मुताबिक बीते दिनों कई म्यूजिक कॉन्सर्ट का ऐलान किया गया है और कुछ ग्लोबल स्टार पहली बार आ रहे हैं। इनमें मरून 5, ग्रीन डे, शॉन मेंडेस, लुइस टॉमलिंसन जैसे नाम शामिल बताये जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त , कोल्डप्ले, दुआ लिपा, एड शीरन जैसे इंटरनेशनल स्टार्स फिर से भारत मेंप्रदर्शन कर रहे हैं। देश में दिलजीत दोसांझ, मोनाली ठाकुर और करण अहूजा जैसे स्थानीय कलाकारों ने इस ट्रेंड को आगे बढ़ाने का काम किया है।
बीते वर्षों में ग्लोबल और लोकल स्टार्स को शामिल करने वाले इतने बड़े पैमाने के म्यूजिक कॉन्सर्ट नहीं देखे गए थे, जिसमें अब काफी तेजी आई है। टिकटिंग प्लेटफ़ॉर्म की एक हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि लाइव इवेंट या कॉन्सर्ट से इनकम में 9.5 गुना बढ़ोतरी हुई है और कोरोना महामारी के बाद विशेष रूप से इसमें तेजी देखी गई है। अब लोग घरों से बाहर निकलकर लाइव परफॉर्मेंस देखना चाहते हैं। वे इसके लिए महंगी टिकट लेने को भी तैयार हैं। लाइव इवेंट से रेवन्यू हासिल करने के मामले में भारत, दक्षिण कोरिया, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया से आगे 7वें स्थान पर है। यहां की आबादी, स्थिर मुद्रा और पर्यटन के लिए अनुकूल माहौल के चलते भारत कॉन्सर्ट के लिए एक पसंदीदा सेंटर बन गया है। साउथ कोरिया को इकोनॉमी को वहां होने वाले कॉन्सर्ट के जरिए बड़ा बूस्ट मिला है।
6-8 हजार करोड़ की अर्थव्यवस्था
इस वर्ष भारत में एड शीरन, शॉन मेंडेस, ग्रीन डे और ब्लैकपिंक समेक कई इंटरनेशनल स्टार्स परफॉर्म करने वाले हैं। नतीजतन, देश की की कॉन्सर्ट इकोनॉमी के 6,000 से 8,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2028 तक म्यूजिक मार्केट 245 मिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इसी के तहत साल 2024 में देश के 300 से ज्यादा शहरों 30 हजार से ज्यादा छोटे-बड़े शोज हुए थे। ये शोज सिर्फ महानगरों में नहीं बल्कि कानपुर, शिलॉन्ग, गांधी नगर जैसे टू-टियर सिटी में भी हुए थे।
कॉन्सर्ट के लिए कौन -कौन से इंतजामों की जरूरत
भारत में होने वाले कॉन्सर्ट के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना भी इस सेक्टर को बढ़ावा देने में अहम योगदार देगा, जिसका जिक्र पीएम मोदी भी कर चुके हैं। भारत में बीते दिनों हुए दिलजीत से लेकर कोल्डप्ले के कॉन्सर्ट में विवाद भी सामने आए थे. दिल्ली में हुए दिलजीत के कॉन्सर्ट में टिकटों की कालाबाजारी का मामला सामने आया था। इसके साथ ही खुलआम शराब परोसने को लेकर भी शिकायत दर्ज की गई थी। इसके अलावा जिस जेएलएन स्टेडियम में ये शो हुआ था, वहां भी फैंस ने संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया था। इसी तरह का विवाद उनके चंडीगढ़ वाले कॉन्सर्ट में भी सामने आया था।
म्यूजिक कॉन्सर्ट में गायक सुखविंदर
इसी तरह सिंगर मोनाली ठाकुर ने दिसंबर में वाराणसी के एक कॉन्सर्ट को बीच में छोड़ दिया था। उन्होंने आयोजकों पर बदइंतजामी का आरोप लगाते हुए कहा कि उन लोगों ने पैसा कमाने के मकसद से स्टेज समेत बाकी इंतजामों में लापरवाही बरती थी। इस कॉन्सर्ट को बीच में छोड़ने के लिए मोनाली ने अपने फैंस से माफी भी मांगी थी। इसी तरह का विवाद पंजाबी सिंगर करण अहूजा के कॉन्सर्ट में हुआ जहां पुलिस ने ज्यादा शोर को लेकर आयोजकों को समन किया था।
ट्रैफिक जाम – अत्यधिक भीड़ की समस्या
देश में होने वाले कॉन्सर्ट के लिए न सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर बल्कि ट्रैफिक जाम भी एक बड़ी समस्या है. जिस भी शहर में ऐसे कॉन्सर्ट होते हैं वहां लोगों को लंबे ट्रैफिक जाम से गुजरना पड़ता है। इसके अलावा अत्यधिक भीड़ और धक्का-मुक्की की वजह से कई लोग खुद को सुरक्षित भी महसूस नहीं करते। इवेंट वाली जगहों पर टॉयलेट्स की हालत भी खस्ताहाल हो जाती है क्योंकि इतने बड़े क्राउड मैनजमेंट को लेकर पर्याप्त इंतजामों की कमी बनी रहती है।
इन सभी दिक्कतों के पीछे वजह भारत में लाइव कॉन्सर्ट के लिए तय स्थानों का न होना है. देशभर में ऐसे इवेंट किसी स्टेडियम या ओपन ग्राउंड में किए जाते हैं जो म्यूजिक इवेंट की जरुरतों के हिसाब से मुफीद नहीं है. ऐसी जगहों को सिर्फ अस्थाई तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इसी वजह से वहां बैठने के इंतजामों से लेकर बाकी व्यवस्थाएं अंतरराष्ट्रीय मानकों का सामना करने में विफल साबित होती हैं.
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