
Valmik Thapar Death
Valmik Thapar Death: नई दिल्ली: भारत के जाने-माने वन्यजीव संरक्षणवादी और लेखक वाल्मीकि थापर का शनिवार, 31 मई को नई दिल्ली स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे। थापर ने अपना अधिकांश जीवन राजस्थान के रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में बाघों के संरक्षण और अध्ययन को समर्पित किया था। उन्होंने 1988 में ‘रणथंभौर फाउंडेशन’ की सह-स्थापना की, जो समुदाय आधारित संरक्षण कार्यों में सक्रिय एक गैर-सरकारी संगठन है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने थापर के निधन को देश के लिए एक बड़ी क्षति बताया और सोशल मीडिया पर उनकी प्रशंसा की। रमेश ने कहा कि थापर के साथ उनके वन्यजीव संरक्षण और जैव विविधता के मुद्दों पर गहरे विचार-विमर्श होते थे।
Valmik Thapar Death: परिवार और शिक्षा
वाल्मीकि थापर का जन्म 1952 में नई दिल्ली में हुआ था। उनके पिता प्रसिद्ध पत्रकार रोमेश थापर थे, जबकि उनकी बुआ इतिहासकार रोमिला थापर हैं। उन्होंने दून स्कूल से शिक्षा ग्रहण की और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से समाजशास्त्र में स्वर्ण पदक के साथ स्नातक की डिग्री प्राप्त की। थापर ने अभिनेता शशि कपूर की बेटी और रंगमंच कलाकार संजना कपूर से विवाह किया था।
Valmik Thapar Death: वन्यजीव संरक्षण में योगदान
थापर बाघ संरक्षण के क्षेत्र में भारत के अग्रणी विशेषज्ञों में से एक थे। वे ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की मूल टीम के प्रमुख सदस्य फतेह सिंह राठौर के मार्गदर्शन में काम करते थे। उन्होंने शिकार रोकने वाले कठोर कानूनों और बाघों के आवास की सुरक्षा के लिए लंबे समय तक आवाज उठाई। थापर 150 से अधिक सरकारी समितियों का हिस्सा रह चुके थे, जिनमें राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड भी शामिल है।
Valmik Thapar Death: विवादास्पद मुद्दों पर रुख
थापर ने 2005 में सरिस्का बाघ अभयारण्य में बाघों के गायब होने के बाद गठित बाघ कार्यबल की रिपोर्ट पर असहमति जताई थी। उन्होंने बाघों के आवास में मानव हस्तक्षेप कम करने और प्राकृतिक संरक्षण की जरूरत पर बल दिया। साथ ही, भारत में ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत अफ्रीकी चीतों को जंगल में पुनः लाने की पहल पर उन्होंने कड़ा विरोध जताया, क्योंकि उनका मानना था कि इसके लिए भारत में उपयुक्त आवास और प्रबंधन का अनुभव नहीं है।
Valmik Thapar Death: लेखन और फिल्म निर्माण
वाल्मीकि थापर ने वन्यजीव संरक्षण पर 30 से अधिक पुस्तकें लिखीं या संपादित कीं, जिनमें ‘लैंड ऑफ द टाइगर: ए नेचुरल हिस्ट्री ऑफ द इंडियन सबकॉन्टिनेंट’ (1997) और ‘टाइगर फायर: 500 इयर्स ऑफ द टाइगर इन इंडिया’ शामिल हैं। उन्होंने बीबीसी सहित कई चैनलों के लिए डॉक्यूमेंट्री प्रस्तुत कीं और सह-निर्माण किया। उनका छह-भागीय वृत्तचित्र ‘लैंड ऑफ द टाइगर’ वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में विशेष महत्व रखता है। 2024 में वे वृत्तचित्र ‘माई टाइगर फैमिली’ में भी दिखाई दिए थे।
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