छत्तीसगढ़ में इन दिनों ‘तकरीर’ पर तकरार हो रही है लेकिन इसकी क्या सच्चाई है इस बारे में जानना हर किसी के लिए जरूरी है.. अमूमन बातें छनकर बाहर आती हैं, तो अक्सर गलत तरीके से उसे वायरल किया जाता है.. जिसकी वजह से हकीकत दबकर रह जाती है.. ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज के बयान के बाद हुआ..
जिसकी वजह से छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि देश में हलचल मच गई.. डॉक्टर सलीम राज के इस बयान को जिस प्रकार से लिया जा रहा है क्या इसकी सच्चाई यही है या फिर कुछ और… इस हकीकत से पर्दा उठाने के लिए एशियन न्यूज ने उनसे खास बातचीत की है और इसकी सच्चाई जानने का प्रयास किया है जिसमें उन्होंने बताया
कि जिस तरीके से बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है उसका वास्तविकता से नाता ही नहीं है.. उन्होंने कहा कि मैने मस्जिदों के इमाम के लिए कोई आदेश जारी नहीं किए हैं बल्कि मस्जिदों के मुतवल्लियों के लिए यह आदेश जारी किया गया है…
अक्सर यह देखने में आता है कि कुछ लोग पद की गरिमा और उसकी प्रतिष्ठा को समझने की बजाय नाजायज हक जताने लगते हैं.. जिसका खामियाजा समाज को भुगतना पड़ जाता है.. इस मामले को लेकर ही डॉ. सलीम राज ने कहा कि मस्जिदों को राजनीति का अड्डा नहीं बनने देंगे…नमाज के बाद जो मुतवल्ली राजनीतिक भाषण देते हैं…
इसके लिए यह आदेश है जारी किया गया है…उन्होंने कहा केंद्र सरकार के खिलाफ अधूरी जानकारियां देकर भ्रम फैलाने का काम करते हैं। अब ऐसा नहीं होने दिया जाएगा…पहले मुतवल्लियों को भाषण वक्फ बोर्ड को दिखाना पड़ेगा…लेकिन ये साफ करते हुए कहा कि ये मस्जिदों के इमाम पर लागू नहीं होता वह अपने तकरीर के लिए स्वतंत्र है…
वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज ने मुतवल्लियों को निर्देश दिया है कि जुमे की नमाज से पहले दिए जाने वाले भाषणों की सामग्री वक्फ बोर्ड को अवगत कराई जाए और उसकी सहमति ली जाए…इसके लिए उन्होंने वॉट्सएप ग्रुप भी बनाया है… इस मसले पर हमारे संवाददाता इम्तियाज अंसारी ने वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज से स्पष्ट बातचीत की..
डॉ. सलीम राज ने बेहद स्पष्ट तरीके से सामाजिक जिम्मेदारों को यह पैगाम दे दिया है कि मस्जिद इबादत के लिए है.. उन्होंने पूववर्ती सरकार में बिगड़ी सामाजिक संरचना का जिक्र करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि प्रदेश में इस तरह की
अव्यवस्था किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं की जा सकती.. साथ ही यह भी कहा है कि राजनीति के लिए, अपनी बातों को रखने के लिए और भी मंच हैं.. पर धार्मिक सौहार्द को बिगाड़ने वाली कोशिश किसी भी हाल में वाजिब नहीं है.
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