
Supreme Court:
Supreme Court: नई दिल्ली : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर मचे विवाद पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने SIR पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन आयोग की प्रक्रिया पर कई सवाल भी खड़े किए।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी: “आप कानून के तहत ही काम करें”
सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह नागरिकता साबित करने के लिए आधार, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे डॉक्युमेंट्स को सूची में शामिल करे। हालांकि, आयोग ने आधार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि हम आयोग की प्रक्रिया को नहीं रोक रहे, लेकिन वह केवल कानून के तहत कार्य करे और नागरिकता से जुड़े मुद्दों में ना उलझे, जो कि गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।
याचिकाकर्ताओं का आरोप: “चुनाव आयोग की मनमानी”
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकर नारायण ने दलील दी कि चुनाव आयोग द्वारा वोटर लिस्ट रिवीजन की मौजूदा प्रक्रिया मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने का अनुचित दबाव डालती है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग नागरिकों से माता-पिता के दस्तावेज तक मांग रहा है और आधार कार्ड को पहचान पत्र मानने से इनकार कर रहा है, जो भेदभावपूर्ण और मनमानी है।
SC ने पूछा: “इतनी देर से क्यों शुरू हुई प्रक्रिया?”
कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी पूछा कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वोटर लिस्ट का रिवीजन क्यों शुरू किया गया। कोर्ट ने कहा कि यह कार्य चुनाव से काफी पहले होना चाहिए था, ताकि निष्पक्षता बनी रहे।
चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए 11 दस्तावेजों की सूची:
- सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी या पेंशनभोगी का पहचान पत्र / पेंशन आदेश
- सरकारी/बैंक/डाकघर/LIC/PSU द्वारा 1 जुलाई 1987 से पूर्व जारी प्रमाण पत्र
- सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र
- पासपोर्ट
- मान्यता प्राप्त बोर्ड या विश्वविद्यालय से शैक्षणिक प्रमाण पत्र
- राज्य प्राधिकारी द्वारा जारी स्थायी निवास प्रमाण पत्र
- वन अधिकार प्रमाण पत्र
- वैध जाति प्रमाण पत्र (OBC/SC/ST)
- राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (जहां लागू हो)
- परिवार रजिस्टर
- जमीन या मकान आवंटन का सरकारी प्रमाण पत्र
अगली सुनवाई 28 जुलाई को
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 28 जुलाई तय की है और तब तक आयोग को प्रक्रिया में पारदर्शिता और संविधानिक मर्यादा का पालन करने की सलाह दी है। आयोग ने आश्वासन दिया है कि बिना उचित सुनवाई किसी को भी मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।
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