Raipur Special Story : अंधेरे में चलते हैं जो मंजिल तलाशने, खुदा उनके लिए खुद चराग बन जाते हैं, अंधकार में रहकर छात्रों के जीवन में शिक्षा का ज्योत जला रहे …ऐसे है शिक्षक गोकुलराम वर्मा…पढ़े पूरी स्टोरी

Raipur Special Story

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इम्तियाज़ अंसारी

Raipur Special Story : रायपुर : राजधानी रायपुर में एक शिक्षक ऐसा भी है हो खुद अंधकार में रहकर छात्रों के जीवन में शिक्षा की ज्योत जला रहे हैं…जी हां हम बात कर रहे हैं राम नगर स्थित  गोकुलराम वर्मा शासकीय प्राथमिक शाला के  प्रधानाध्यापक एम. गुरुनाथ की…

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Raipur Special Story : जो नेत्र से 90 प्रतिशत ब्लाइंड होने के बावजूद सामान्य स्कूल में प्रधानाध्यापक हैं और नियमित एवं सामान्य रूप से बच्चों को पढ़ा रहे हैं… शिक्षा के प्रति ऐसा जुनून कि वह अपनी दिव्यांगता को पीछे छोड़ पिछले 30 वर्षों से वह शिक्षा प्रदान कर रहे हैं साथ ही अपने अधीनस्थ शिक्षकों को मार्गदर्शन भी दे रहे…इससे पहले उन्होंने दरिया बंद, छुरा में अध्यापन कर चुके हैं…

 


किसीने सच ही कहा है कि ‘कुदरत के खजाने में किसी चीज की कमी नहीं, खोजने से कोहिनूर भी मिल जाता है। अंधेरे में चलते हैं जो मंजिल तलाशने, खुदा उनके लिए खुद चराग बन जाता है… जी हां, इसे चरितार्थ कर दिखाया है रायपुर के दिव्यांग शिक्षक एम. गुरुनाथ और ने, जिन्हें खुदा ने रोशनी से तो नहीं नवाजा है, लेकिन जान की ज्योति भरपूर दी है। ये 30 वर्षों से समाज में शिक्षा की

अलख जगा रहे हैं। आपको बता दूं कि एम गुरुनाथ की पत्नी एम. उमा रानी भी 100 प्रतिशत ब्लाइंड हैं और शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बाधित विद्यालय मठपुरैना में पढ़ा रही हैं। शासकीय स्कूल में पढ़ा रहे हैं.. इन्होंने अपनी दिव्यांगता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। समाज की तमाम तानाकशी व कठिनाइयों के बावजूद इस दंपति ने हार नहीं मानी और शिक्षा की अलख जगाने निकल पड़े।

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आज आलम यह है कि बच्चे, अभिभावक और अन्य तमाम लोग इनकी पढ़ाने की शैली के मुरीद हैं..उन्होंने बताया की इनके लिए पहले सामान्य बच्चों को पढ़ाना चुनौती भरा था, लेकिन इनकी पढ़ाने की शैली इस प्रकार है कि ब्रेन लिपि के माध्यम से पढ़ाने के बाद भी बच्चों को सारे पाठ आसानी से कंठस्थ हो जाते हैं…

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वो ना केवल छात्र को सही शिक्षा दे रहे हैं बल्कि उनके आने के बाद स्कूल की तस्वीर भी बदल गई है… वह अपनी तरफ से और समा शेरों के तरफ से लगातार शिक्षा और स्कूल की तस्वीर बदल रहे हैं…

एम. गुरुनाथ ने बताते हैं कि जब मैंने होश संभाला तो मेरे जीवन में अंधकार ही अंधकार था। उसी समय मैंने ठाना कि मुझे इसी को हथियार बनाना है और समाज में शिक्षा की जोत जलानी है। उसी समय से मैंने मेहनत शुरु की और आज इस मुकाम पर पहुंचा हूं। हमारे दो बच्चे हैं,

जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने बताया हमारी फैमिली बहुत खुश है साथ ही हमारे स्कूल के शिक्षक काफी मेहनती और सपोर्टिव हैं…इस सफर को तय करने में हमको  बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, वहीं समाज के कुछ लोगों से तानाकशी भी सुनने को मिली। गुरुनाथ ने बताया कि उनकी जिंदगी बचपन से ही चुनौतीपूर्ण रही।

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उन्हें कई बार दिव्यांग होने का ताना भी सुनने को मिला। उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि जब मेरा प्रधानाध्यापक बनने का लेटर आया तो अधिकारी ने मुझसे सवाल किया कि आप कैसे इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभा पाएंगे? आप तो दिव्यांग हैं। उसके बाद हमने ऐसा काम कर दिखाया कि आज वहीं लोग दूसरे को मिसाल देते हैं..आज अगर हमें सम्मान दिया जा रहा है, वह शिक्षा की ही देन है..

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एक दिव्यांग के लिए शिक्षा ग्रहण करना व पढ़ाना दोनों चुनौतीपूर्ण है, लेकिन शिक्षा व समाज के लिए समर्पित इस इस व्यक्ति ने इस चुनौती को स्वीकार किया। आज एक प्राइमरी स्कूल में प्रधानाध्यापक हैं। हालांकि एम गुरुनाथ ने इतनी मेहनत की कि आज बच्चों को सामान्य तरीके और ब्रेन लिपि के माध्यम से बच्चों को पढ़ा रहे हैं। उनका मानना है कि मेहनत करने से सभी कुछ संभव है।

 

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