
NCERT
NCERT: नई दिल्ली: भारत सरकार ने 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाया, जिसका उद्देश्य देशवासियों, खासकर युवा पीढ़ी को 1947 में हुए भारत-पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी और उससे उत्पन्न दुखों को याद दिलाना है। इस दिन को मनाने का मकसद न केवल इतिहास की भयावहता को समझना है, बल्कि उससे सबक लेकर एकजुट और शांतिपूर्ण समाज की नींव को मजबूत करना भी है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने इस अवसर पर कक्षा 6 से 12 के लिए एक विशेष मॉड्यूल तैयार किया है, जो बंटवारे के कारणों, परिणामों और उससे मिलने वाली सीख को विस्तार से समझाता है।
बंटवारे के लिए ये ज़िम्मेदार
एनसीईआरटी के मॉड्यूल के अनुसार, भारत का बंटवारा किसी एक व्यक्ति का निर्णय नहीं था। इसके लिए तीन पक्षों को जिम्मेदार माना गया है:
-मुहम्मद अली जिन्ना: जिन्ना ने मुस्लिम लीग के 1940 के लाहौर अधिवेशन में ‘दो-राष्ट्र सिद्धांत’ की मांग उठाई, जिसमें हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग समुदाय बताकर पाकिस्तान की मांग की गई।
-कांग्रेस: शुरू में बंटवारे का विरोध करने वाली कांग्रेस ने बाद में गृहयुद्ध के डर से इसे स्वीकार कर लिया।
-लॉर्ड माउंटबेटन: भारत के अंतिम वायसराय के रूप में माउंटबेटन ने बंटवारे को लागू किया, लेकिन उनकी जल्दबाजी ने हालात को और जटिल बना दिया।
मॉड्यूल में यह भी बताया गया है कि ब्रिटिश सरकार भारत को एकजुट और स्वतंत्र देखना चाहती थी। उनकी ‘डोमिनियन स्टेटस’ योजना में भारत को स्वशासन देने की बात थी, जिसमें प्रांतों को स्वायत्तता का विकल्प दिया गया था। लेकिन कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, जिसके बाद बंटवारा अपरिहार्य हो गया।
नेताओं की राय और बंटवारे का दर्द
बंटवारे को लेकर देश के प्रमुख नेताओं के विचार अलग-अलग थे। मॉड्यूल में बताया गया है कि सरदार वल्लभभाई पटेल शुरू में बंटवारे के खिलाफ थे, लेकिन 1947 में उन्होंने इसे ‘ज़बरदस्ती ली जाने वाली दवा’ के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “देश युद्ध का मैदान बन चुका है। दोनों समुदाय अब शांति से नहीं रह सकते। गृहयुद्ध से बचने के लिए बंटवारा बेहतर है।”
लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा, “बंटवारा मेरा निर्णय नहीं था। भारतीय नेताओं ने इसे मंजूरी दी थी। मेरा काम इसे शांतिपूर्वक लागू करना था। जल्दबाजी मेरी गलती थी, लेकिन हिंसा की जिम्मेदारी भारतीयों की थी।”
महात्मा गांधी बंटवारे के सख्त खिलाफ थे। 9 जून 1947 को एक प्रार्थना सभा में उन्होंने कहा, “अगर कांग्रेस बंटवारे को मंजूरी देती है, तो यह मेरी सलाह के खिलाफ होगा।” लेकिन हालात ऐसे बने कि नेहरू और पटेल ने गृहयुद्ध के डर से बंटवारे को स्वीकार किया, और गांधीजी ने भी अंततः अपनी आपत्ति वापस ले ली।
माउंटबेटन की जल्दबाजी और उसका परिणाम
मॉड्यूल में माउंटबेटन की जल्दबाजी को बंटवारे की सबसे बड़ी त्रुटियों में से एक बताया गया है। उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख जून 1948 से घटाकर अगस्त 1947 कर दी, जिसके लिए केवल पांच हफ्तों का समय मिला। सीमा रेखा का निर्धारण भी जल्दबाजी में हुआ, जिसके कारण लाखों लोग अनिश्चितता में फंस गए। 15 अगस्त 1947 के दो दिन बाद तक पंजाब के कई निवासियों को यह नहीं पता था कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में। इस लापरवाही ने हिंसा और विस्थापन को और बढ़ा दिया।
कश्मीर: बंटवारे की सबसे बड़ी चुनौती
बंटवारे के बाद हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव कम नहीं हुआ। इस दौरान कश्मीर का मुद्दा उभरा, जो भारत की विदेश नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया। मॉड्यूल में बताया गया है कि कश्मीर मुद्दे ने न केवल भारत-पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित किया, बल्कि कई देशों को भारत पर दबाव बनाने का मौका भी दिया।
स्मृति दिवस का महत्व
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस न केवल अतीत की त्रासदी को याद करने का अवसर है, बल्कि यह समाज को एकता और शांति की ओर प्रेरित करने का भी प्रयास है। एनसीईआरटी का यह मॉड्यूल छात्रों को इतिहास के इस दुखद अध्याय से परिचित कराएगा और उन्हें यह सिखाएगा कि नफरत और विभाजन की नीति से केवल विनाश होता है।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा, “यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमें अपने इतिहास से सीख लेनी चाहिए। बंटवारे का दर्द हमें एकजुट रहने और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने की प्रेरणा देता है।”
Discover more from ASIAN NEWS BHARAT - Voice of People
Subscribe to get the latest posts sent to your email.