Narayanpur : छत्तीसगढ़ के अंदरूनी क्षेत्रों में पुलिस द्वारा चलाए जा रहे आक्रामक नक्सल विरोधी अभियानों और लगातार खुल रहे पुलिस कैंपों के कारण नक्सलियों के प्रति लोगों का विश्वास टूट रहा है। वहीं, पुलिस और सरकार के प्रति विश्वास बढ़ने से नक्सल संगठन के सदस्य मुख्य धारा में जुड़ने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
इसका प्रमाण हाल ही में माड़ डिवीजन के अंतर्गत कुतुल एरिया कमेटी के दिलीप ध्रुवा (एसीएम) सहित 7 नक्सलियों द्वारा आत्मसमर्पण करना है।
आत्मसमर्पण का कारण और नक्सलियों में असंतोष
नक्सलियों के भीतर वर्षों से शीर्ष नेतृत्व के दबाव, विचारधारा की खोखली सच्चाई, और आंतरिक मतभेदों के कारण असंतोष पनप रहा था।
- शासन की पुनर्वास नीति का आकर्षण:
- आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने शासन की पुनर्वास योजना का लाभ लेते हुए घर, नौकरी और अन्य सुविधाओं को अपनाने का निर्णय लिया।
- पुनर्वास नीति के तहत सरकार आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सुरक्षित जीवन और उनके परिवारों के लिए सम्मानजनक जीवनयापन का वादा करती है।
- विचारधारा में बदलाव:
- आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने स्वीकार किया कि शीर्ष माओवादी नेतृत्व अब उनकी भलाई के बारे में नहीं सोचता।
- स्थानीय लोगों का समर्थन भी धीरे-धीरे नक्सलियों से हटता गया।
- समाज में वापस लौटने की प्रेरणा:
- “माड़ बचाओ अभियान” ने नक्सलियों को यह विश्वास दिलाया कि वे मुख्यधारा में वापस लौटकर शांति और स्वतंत्रता का जीवन जी सकते हैं।
- नक्सली संगठन से जुड़े कई ग्राम और पंचायत स्तर के सदस्य भी अब संगठन छोड़ने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
पुलिस की रणनीति और नक्सल विरोधी अभियान
पुलिस ने नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
- आक्रामक अभियान और पुलिस कैंपों का विस्तार:
- अंदरूनी क्षेत्रों में पुलिस की उपस्थिति बढ़ने से स्थानीय लोग अब खुद को अधिक सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
- नक्सल विरोधी अभियानों के तहत नक्सलियों पर दबाव बनाया जा रहा है।
- आत्मसमर्पण की अपील:
- पुलिस और प्रशासन लगातार नक्सलियों से आत्मसमर्पण की अपील कर रहे हैं।
- सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जो नक्सली आत्मसमर्पण नहीं करेंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
- गुप्त सूचना तंत्र का प्रभाव:
- पुलिस के पास गोपनीय सूचनाएं हैं कि आने वाले समय में और भी नक्सली आत्मसमर्पण करने की योजना बना रहे हैं।
- यह नक्सली संगठन के शीर्ष नेतृत्व के लिए एक बड़ा नुकसान साबित हो रहा है।
माड़ बचाओ अभियान: नई आशा की किरण
“माड़ बचाओ अभियान” नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकार और पुलिस का एक प्रयास है, जो न केवल नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित कर रहा है, बल्कि स्थानीय लोगों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव ला रहा है।
- आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने स्वीकार किया है कि वे बाहरी नेताओं के दबाव में आकर माड़ के लोगों को प्रताड़ित करते रहे, लेकिन अब वे इस खोखली विचारधारा से बाहर निकलना चाहते हैं।
- नक्सली संगठन के सदस्यों के परिवार भी उन्हें वापस समाज में देखना चाहते हैं।
स्थानीय समुदाय और आत्मसमर्पण की भूमिका
स्थानीय समुदायों में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का स्वागत हो रहा है।
- स्थानीय लोग नक्सलियों से अपील कर रहे हैं कि वे बाहरी लोगों की विचारधारा छोड़कर समाज का हिस्सा बनें।
- आत्मसमर्पण के बाद ये नक्सली अपने नैसर्गिक जीवन की ओर लौट सकते हैं और शांतिपूर्ण जीवन जी सकते हैं।
नक्सली संगठन के लिए बड़ा झटका
नक्सलियों का लगातार आत्मसमर्पण करना न केवल संगठन की ताकत को कमजोर कर रहा है, बल्कि उनके शीर्ष नेतृत्व के लिए एक बड़ा नुकसान साबित हो रहा है।
- आत्मसमर्पण के कारण संगठन के प्रभाव में भारी कमी आई है।
- स्थानीय लोगों का नक्सलियों के खिलाफ खड़ा होना संगठन की विचारधारा के अंत का संकेत है।
“माड़ बचाओ अभियान” और सरकार की पुनर्वास नीति नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एक नई उम्मीद और शांति का संदेश लेकर आई है। पुलिस और प्रशासन के निरंतर प्रयासों के कारण नक्सली अब समाज की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
यह न केवल नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति लाने का प्रयास है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए एक सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ता कदम भी है।
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने यह साबित कर दिया है कि हर व्यक्ति को एक नई शुरुआत का अधिकार है, और यह कदम माड़ को नक्सल मुक्त क्षेत्र बनाने में मील का पत्थर साबित हो रहा है।