
प्रयागराज :Mahakumbh 2025 : प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ 2025 को लेकर विवादों का दौर शुरू हो चुका है। गैर-सनातनियों की एंट्री को लेकर पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सख्त ऐलान किया था, जिसके बाद अब नागा संन्यासियों ने भी अपनी ओर से नई गाइडलाइंस जारी कर दी हैं। नागा संन्यासियों के मुताबिक, महाकुंभ में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को माथे पर तिलक और कलाई पर कलावा अनिवार्य रूप से पहनना होगा।
गाइडलाइन क्यों की गई जारी?
नागा संन्यासियों का कहना है कि महाकुंभ सनातन संस्कृति का सबसे बड़ा और पवित्र आयोजन है, जिसमें आस्था और श्रद्धा सर्वोपरि है। इसलिए गैर-आस्थावान लोगों को रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है। उन्होंने कहा कि केवल वही लोग महाकुंभ में प्रवेश कर सकेंगे, जो सनातन धर्म के रीति-रिवाजों का पालन करेंगे।
अखाड़ा परिषद का ऐलान
इससे पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने गैर-हिंदुओं और सनातन धर्म के विरुद्ध आचरण करने वालों की महाकुंभ में एंट्री पर रोक लगाने की बात कही थी। परिषद का कहना है कि महाकुंभ सनातनी परंपराओं का महोत्सव है, ऐसे में वहां आस्थाहीन लोगों की उपस्थिति सही नहीं है।
नागा संन्यासियों का सख्त रुख
नागा संन्यासियों ने साफ कहा है कि यदि किसी के माथे पर तिलक नहीं होगा और कलाई में कलावा नहीं बंधा होगा, तो उन्हें महाकुंभ में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। यह गाइडलाइन सभी श्रद्धालुओं के लिए लागू होगी।
क्या है तिलक और कलावे का महत्व?
- तिलक: माथे पर तिलक लगाना हिंदू धर्म में शुभ और पवित्र माना जाता है। यह आस्था का प्रतीक है और धार्मिक आयोजनों में इसे विशेष रूप से लगाया जाता है।
- कलावा: कलाई पर बांधा जाने वाला लाल या पीला धागा (कलावा) रक्षा और श्रद्धा का प्रतीक है। इसे धार्मिक कार्यों में शुभ माना जाता है।
विवाद और प्रतिक्रियाएं
नागा संन्यासियों और अखाड़ा परिषद के इस फैसले के बाद कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कुछ लोग इसे सनातन धर्म की सुरक्षा का कदम बता रहे हैं, तो कुछ इसे भेदभाव के रूप में देख रहे हैं।
महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह हर 12 वर्ष में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। महाकुंभ में संगम पर स्नान करने को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।
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