
दाल भात में मूसलचंद बनाने चले ट्रम्प : प्रधानमंत्री मोदी को अपनी ओर लपका रहे डोनाल्ड ट्रम्प
नई दिल्ली। दाल भात में मूसलचंद बनाने चले ट्रम्प : भारत और रूस की दोस्ती बहुत पुरानी और आपसी विश्वास का प्रतीक मानी जाती है। अब दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रम्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने पाले में लेन के लिए लपका रहे हैं। तभी तो सोमवार को अपने राष्ट्रपति बनाने के बाद ही प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी से उन्होंने दूरभाष पर बातचीत की। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिकी हथियारों का लालच दिया। सवाल तो ये है कि जो अमेरिका भारत को जेट इंजनों के लिए लम्बे अरसे से लटकाए रखा हो, उसका क्या भरोसा कि वो भारत को दूसरे हथियारों की आपूर्ति इतनी आसानी से कर देगा ? भारत और रूस की दोस्ती में अमेरिका अपनी जगह बनाने की नाकामयाब कोशिश में लगा हुआ है। इससे अमेरिका अपना दोहरा हित साधने में लगा है। पहला हथियारों वाला और दूसरा उसकी मृतप्राय हो चली जनरल इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों के लिए काम का जुगाड़ करना। चीन को रोकने के लिए भारत को अपने पक्ष में करना उसकी मजबूरी है। सीधी भाषा में कहा जाये तो दाल भात में मूसल चंद बनाने चले हैं डोनाल्ड ट्रम्प।
दाल भात में मूसलचंद बनाने चले ट्रम्प : जानिए कैसे
असल में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी के बीच सोमवार को फोन पर बातचीत हुई थी। डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद दोनों नेताओं के बीच यह पहली बातचीत थी। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच टेक्नोलॉजी, बिजनेस, निवेश, ऊर्जा और डिफेंस सेक्टर पर दोनों देशों के आगे बढ़ने को लेकर जमकर बात हुई।
ट्रम्प ने भारत की कमजोर नस दबाया
डोनाल्ड ट्रम्प अच्छी तरह जानते हैं कि भारत अपने तेजस और एमका फाइटर जेट के लिए इंजनों के संकट से जूझ रहा है। ये संकट भी अमेरिकी सरकार की ही उपज है। तो पीएम मोदी के साथ बातचीत में राष्ट्रपति ट्रंप ने डिफेंस सेक्टर पर ज्यादा जोर दिया। ट्रंप ने कहा कि वह चाहते हैं कि भारत अमेरिका से और ज्यादा हथियार खरीदे। सवाल तो ये है कि इतना सबकुछ होने के बाद भारत अमेरिका पर विश्वास करे भी तो कैसे ? असल में ट्रम्प के पेट में दर्द इसलिए हो रहा है कि भारत सबसे ज्यादा हथियार रूस से खरीदता है, लेकिन अब रूस पर निर्भरता को कम करने के लिए वो दूसरे देशों के साथ भी डिफेंस डील कर रहा है। इस बात को अमेरिका अच्छे से जानता है और चाहता है कि भारत रूस को छोड़कर उसके साथ सैन्य उपकरण खरीदे।
रूसी हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार कैसे बना भारत?
रिपोर्ट के अनुसार , 1962 में चीन से युद्ध के बाद हथियारों के लिए भारत ने सोवियत संघ की ओर देखना शुरू किया था। 90 के दशक तक भारतीय सेना के हथियारों का करीब 70 फीसदी, एयर फोर्स का 80 फीसदी और नौसेना का 85 फीसदी सामान रूसी थे। भारत ने अपना पहला एयरक्राफ्ट कैरिएर INS विक्रमादित्य साल 2004 में रूस से ही खरीदा था। इस एयरक्राफ्ट कैरिएर ने पहले सोवियंत संघ और बाद में रूसी नौसेना की सेवा की थी।
IAF के पास 400 से ज्यादा रूसी फाइटर जेट
भारतीय वायुसेना के पास इस वक्त 410 से ज्यादा सोवियत और रूसी फाइटर जेट हैं, जिसमें आयातित और लाइसेंस निर्मित प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं। इसके अलावा भारत के सैन्य उपकरणों की लिस्ट में रूसी निर्मित पनडुब्बियां, टैंक, हेलीकॉप्टर, पनडुब्बियां, फ्रिगेट और मिसाइलें भी मौजूद हैं।
मेक इन इंडिया पर जोर
भारत अब रूसी हथियारों पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है और अपनी रक्षा खरीद में वैरायटी ला रहा है। उसने बीते कुछ वर्षों में अमेरिका, इजराइल, फ्रांस और इटली जैसे देशों से कई सैन्य उपकरण खरीदे हैं। जानकारों का कहना है कि इसके बावजूद भारत को रूसी आपूर्ति और पुर्जों पर निर्भरता खत्म करने में 20 साल लग सकते हैं।
ट्रंप के पहले कार्यकाल में US-भारत के बीच हुई थी बड़ी डील
डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका डिफेंस डील में 15 बिलियन डॉलर से अधिक इजाफा हुआ था . इनमें MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर, AH-64E अपाचे हमलावर हेलीकॉप्टर, P-8I समुद्री गश्ती विमान जैसी महत्वपूर्ण डील शामिल थीं।
अमेरिका ने भारत को बनाया था मेजर डिफेंस पार्टनर
अमेरिका की संसद ने साल 2016 में भारत को मेजर डिफेंस पार्टनर घोषित किया था। सीआरएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2008 से 2023 के बीच भारत दुनिया का सबसे हथियार आयातक देश था। इस दौरान दुनिया में जितना भी हथियार खरीदा गया, उसका 10 फीसदी केवल भारत ने खरीदा था। भारत अपने हथियारों की करीब 62 फीसदी आपूर्ति रूस से करता है। उसके बाद फ्रांस (11%), अमेरिका (10%) और फिर इजरायल से (7%) उसके सहयोगी हैं. अमेरिका लगातार भारत को रूस से हथियारों की आपूर्ति कम करने के लिए प्रोत्साहित करता रहा है।
भारत-अमेरिका की डिफेंस डील वाले हथियार
भारत ने अमेरिका से 28 AH-64 अपाचे कॉम्बेट हेलीकॉप्टर, 1354+AGM-114 हेलफायर एंटी टैंक मिसाइल, 245 स्टिंगर पॉर्टेबल मिसाइल, 12APG-78 लॉन्गबो कॉम्बेट हेलिकॉप्टर रडार, 6 स्पेयर हेलकॉप्टर टर्बोशॉफ्ट, 15 CH-47 चिनूक ट्रांसपोर्ट हेलिकॉप्टर, 13 C-130 हर्कुलस एयरक्राफ्ट, 11C-17 ग्लोबमास्टर, 2 MQ-9A रीपर UAV, 512 CBU-97 गाइड बॉम्ब्स, 234 एयरक्राफ्ट टर्बोप्रॉप्स, 147 एयरक्राफ्ट टर्बोफैंस का सौदा किया था। इनमें से कुछ सैन्य उपकरणों की आपूर्ति भी हो चुकी है।
ऐसे में अगर समुद्रीय हथियारों की बात करें तो 1 ऑस्टिन क्लास ट्रांसपोर्ट डॉक, 24 MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर, 12 p-81 पॉसीडॉन पैट्रोल एंड एंटी-सबमरीन वारफेयर एयरक्राफ्ट, 6 S-61 सी किंग ASW हेलिकॉप्टर, 53 हर्पून एंटीशिप मिसाइल और 24 नेवल गैस टर्बाइन का भी सौदा हो चुका है। वहीं थल सेना के लिए 12 फायरफाइंडर काउंटर बैटरी रडार, 145 M-777 टाउड 155 mm होवित्जर, 1200 से ज्यादा M-982 एक्साकैलिबर आर्टिलरी शेल्स और 1,45,400 SIG असॉल्ट राइफल्स की डील उस वक्त हुई थी।
कुल मिलाकर देखा जाए तो जिस तरह ट्रंप के पहले कार्यकाल में भारत-अमेरिका के बीच डिफेंस डील में तेजी आई थी, उसी तरह ट्रंप के इस कार्यकाल में भी भारत और अमेरिका के बीच नए रक्षा समझौते हो सकते हैं , मगर इसका ये मतलब कतई नहीं होना चाहिए कि भारत अपने परम मित्र रूस की अनदेखी करे।
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