
Delhi Politics : केजरीवाल के 3 दांव...कांग्रेस के चारो खाने चित्त....
Delhi Politics : दिल्ली चुनाव : दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक दशक के बाद अपनी खोई हुई ताकत को पुनः स्थापित करने की कोशिश में है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (AAP) ने पहले ही मैदान में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण रणनीतियाँ तैयार कर ली हैं। इस बार, केजरीवाल ने चुनाव को एक नई दिशा में मोड़ा है
और अपने राजनीतिक दांवों से कांग्रेस को एक तरफ कर दिया है। अरविंद केजरीवाल के तीन प्रमुख चुनावी दांव हैं जिनकी मदद से वह दिल्ली विधानसभा चुनाव को आम आदमी पार्टी (AAP) बनाम भारतीय जनता पार्टी (BJP) के मुकाबले में तब्दील करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कांग्रेस को चुनावी मैदान से बाहर रखा जा सके।
कांग्रेस की वापसी की चुनौती
दिल्ली में कांग्रेस पिछले कई सालों से चुनावी मैदान से लगभग बाहर हो चुकी थी। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में लगातार हार का सामना करने के बाद पार्टी की स्थिति कमजोर हुई थी, लेकिन इस बार कांग्रेस दिल्ली में अपनी खोई हुई पहचान को वापस प्राप्त करने की कोशिश कर रही है। पार्टी ने कई पुराने और नए चेहरों को टिकट देने का फैसला किया है और 2024 के चुनाव में अपनी आक्रामक वापसी की रणनीति बनाई है। कांग्रेस नेता जानते हैं कि यदि दिल्ली में उनकी वापसी होनी है, तो उन्हें एक सशक्त विपक्ष के रूप में उभरना होगा, और इस बार उनका मुख्य लक्ष्य दिल्ली की सत्ता पर फिर से काबिज होना है।
हालाँकि, कांग्रेस के लिए इस चुनावी युद्ध में मुकाबला आसान नहीं होने वाला। आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोनों ही मजबूत विपक्षी ताकत के रूप में सामने हैं, और अब केजरीवाल ने अपनी रणनीति से कांग्रेस को किनारे करने की पूरी तैयारी कर ली है।
अरविंद केजरीवाल के तीन दांव
1. मुख्यमंत्री पद का चेहरा
अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव से पहले ही खुद को दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया है। उनका यह कदम न केवल कांग्रेस, बल्कि बीजेपी के लिए भी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि दिल्ली में विधानसभा चुनाव अक्सर मुख्यमंत्री पद के चेहरे के इर्द-गिर्द ही लड़ा जाता है।
केजरीवाल ने पहले ही दिल्ली के लोगों के बीच अपनी नेतृत्व क्षमता को साबित किया है, खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में। वे यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि केवल AAP ही दिल्ली की समस्याओं का हल दे सकती है। इससे कांग्रेस के पास कोई स्पष्ट मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं होने की वजह से, पार्टी का प्रचार अभियान कमजोर पड़ता है।
2. सामाजिक कल्याण योजनाएं और जनहित
केजरीवाल ने दिल्ली में अपनी सरकार के कार्यकाल के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, और मुफ्त बस सेवाओं जैसी योजनाओं को जन-जन तक पहुँचाया। इन योजनाओं ने आम आदमी पार्टी की छवि को एक सामाजिक कल्याणकारी पार्टी के रूप में स्थापित किया है। कांग्रेस इस क्षेत्र में हमेशा से ही समाजवादी रुझान दिखाती रही है, लेकिन केजरीवाल ने इसे अपनी राजनीति का हिस्सा बना
दिया। AAP ने सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में सुधार करके यह साबित किया है कि वह गरीब और मध्यम वर्ग के लिए कार्य कर सकती है। इसके विपरीत, कांग्रेस इन मुद्दों को अपने अभियान का हिस्सा बनाने में असफल रही है, और बीजेपी तो इस मुद्दे पर कहीं भी अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर पाई है।
3. बीजेपी को मुख्य विपक्षी पार्टी बनाना
केजरीवाल ने अपने चुनावी अभियान को इस तरह से चलाया है कि दिल्ली में चुनावी मुकाबला सीधे तौर पर AAP और BJP के बीच हो। वे लगातार बीजेपी पर हमलावर रहे हैं और दिल्ली सरकार के खिलाफ बीजेपी द्वारा किए गए आरोपों का कड़ा जवाब दिया है। इस रणनीति का उद्देश्य यह है कि चुनावी मैदान में कांग्रेस को एक बायस्टैंडर की भूमिका में डाल दिया जाए, जिससे उनका
चुनावी प्रचार कमजोर हो और वे सटीक रूप से अपनी ताकत को नहीं दिखा सकें। केजरीवाल ने यह संकेत दिया है कि उनकी पार्टी का मुख्य ध्यान दिल्ली में बीजेपी को हराने पर है, न कि कांग्रेस को चुनौती देने पर। इसने कांग्रेस को ऐसे स्थिति में ला खड़ा किया है जहां उन्हें अपनी रणनीति को फिर से तैयार करना पड़ा है।
कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति
कांग्रेस को इस समय कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उन्हें दिल्ली में खुद को एक सशक्त विपक्ष के रूप में स्थापित करना है, जबकि उनके पास कोई मजबूत मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं है। पार्टी के नेता भी इस बात को समझते हैं कि दिल्ली की राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए उन्हें आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों के साथ तालमेल बनाने की जरूरत होगी। हालांकि, कांग्रेस के पास एक मौका है यदि वे अपनी नीतियों और मुद्दों को पूरी तरह से जनता के सामने पेश कर सकें।
बीजेपी और AAP का गठजोड़?
दिल्ली में बीजेपी और AAP के बीच मुकाबला इस चुनाव का सबसे बड़ा आकर्षण बनने जा रहा है। दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे के खिलाफ कड़ी रणनीतियाँ अपना रही हैं और जनता को यह संदेश देने में लगी हैं कि उनके पास दिल्ली की सबसे अच्छी भविष्यवाणी है। बीजेपी के पास मोदी लहर और केंद्र सरकार के योजनाओं का समर्थन है, जबकि केजरीवाल ने अपनी स्थानीय सरकार के कार्यों से जनता का विश्वास जीतने का प्रयास किया है।
दिल्ली में क्या होगा?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी और केजरीवाल की रणनीतियाँ चुनावी परिणाम पर बड़ा प्रभाव डाल सकती हैं। हालांकि, कांग्रेस का चुनावी मैदान में वापस आना और अपनी खोई हुई पहचान को फिर से स्थापित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, खासकर जब AAP और BJP दोनों ही अपने-अपने आधार पर मजबूती से खड़ी हैं। अरविंद केजरीवाल ने पहले ही अपनी रणनीतियों के जरिए कांग्रेस को चुनावी क्षेत्र से बाहर कर दिया है और इसे आम आदमी पार्टी बनाम भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला बना दिया है।
आखिरकार, यह चुनावी दांव- पेंच और रणनीतियाँ तय करेंगी कि कौन दिल्ली की सत्ता पर काबिज होगा। कांग्रेस के लिए यह समय अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने और फिर से चुनावी मैदान में मजबूत वापसी का है, लेकिन दिल्ली की राजनीति में केजरीवाल का प्रभुत्व इसे आसान नहीं बनने देगा।