
Betul MP News : आस्था या अंधविश्वास : शरीर में सुजे से नाड़ा पिरोकर करते हैं मन्नतें पूरी...पढ़े पूरी स्टोरी
बैतूल, विनोद कनाठे
Betul MP News : वर्षों से निभा रहे अनोखी परम्परा, शरीर में सुजे से नाड़ा पिरोकर करते हैं मन्नतें पूरी आस्था कहें या अंधविश्वास मन को विचलित करने वाली ऐ तस्वीरें देखकर आप भी चौंक जाएंगे,, क्योंकि आस्था पर है विश्वास
Betul MP News : मध्यप्रदेश के बैतूल ग्रामीण इलाकों में मनोकामनाओं एवं बीमारियों से निजात पाने के लिए आज भी लोग मन्नतों का सहारा लेते हैं । आपको जानकर हैरानी होगी कि आठनेर के ऐसे कई गाँव हैं जहां लोग मन्नत पूरी होने पर अपने शरीर मे लोहे की नुकीली सुई से धागे पिरोकर नाचते हैं और बैलगाड़िया खींचते हैं ।
चैत्र के महीने में होने वाले इस आयोजन को नाड़ा गाड़ा कहा जाता है । शरीर मे नाड़े पिरोकर नाचने की ये परम्परा सदियों से चली आ रही है । चिकित्सक इसे सेहत के लिए घातक बताते हैं। तो वहीं लोग देवी के प्रति सच्ची श्रद्धा समझते हैं,, देखिए ऐ खास सुई धागे का काम कपड़ो या किसी दूसरी चीज को सिलने के लिए होता है
लेकिन बैतूल में एक ऐसी परम्परा भी है जहां नुकीली सुई का इस्तेमाल इंसानी शरीर मे नाड़े पिरोने के लिए किया जाता है । यकीन ना हो तो ये तस्वीरें देखिए जो बैतूल के आठनेर नगर की है । जहां देवी भगत का वेश बनाए बूढ़े और बच्चे नदमस्तक होकर नाच रहे हैं । जबकि उनके शरीर मे लोहे की सुई से नाड़े पिरो दिए गए हैं ।
उस आयोजन को नाड़ा गाड़ा कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि महामारी बीमारियों से निजात पाने के लिए लोग देवी से मन्नत मांगते हैं और जब मन्नत पूरी हो जाती है तो देवी का आभार जताने के लिए अपने शरीर मे नाड़े पिरोकर नाचते हैं । संजय गलफट ग्रामीण
शरीर मे नाड़े पिरोने का नज़ारा देखने वालों के रोंगटे खड़े कर देता है । लेकिन जिनके शरीर में नाड़े पिरोए जाते हैं वो टस से मस नहीं होते । वहीं शुभम् सोनारे की मानें तो ऐ कष्ट भरी मन्नत केवल देवी के प्रति सच्ची आस्था के चलते ही पुरा किया जा सकता है। जिसके लिए शरीर में नाड़े पिरोना वो शुभ मानते हैं । बैतूल जिले के आठनेर ,मुलताई , आमला और भैंसदेही तहसीलों के दर्जनों गांवों में ये धार्मिक आयोजन आयोजित होते हैं और लोग कष्ट सहकर मन्नत पूरी करते हैं।
शुभम सोनारे हर साल चैत्र महीने में होने वाले इस आयोजन में मन्नत पूरी होने की खुशी में कई ग्रामीण खुशी खुशी अपने शरीर मे नाड़े पिरोते हैं । सूती धागों को गूथकर नाड़े तैयार किये जाते हैं जिन पर मक्खन का लेप चढ़ाया जाता है । इन नादौन को एक लोहे की मोटी सुई की मदद से शरीर के दोनों तरफ चमड़ी में पिरो दिया जाता है और उस जगह भी मक्खन का लेप लगाया जाता है ।
इसके बाद इन नाड़ों को दो छोर पर लोग पकड़कर खड़े होते हैं और भगत बना शख्स नाड़ों के बीच नृत्य करता है । इस दौरान ये नाड़े शरीर का अंदर ही रहते हैं । कुछ ग्रामीण लगातार तो कुछ दो चार साल तक अपने शरीर में नाड़े पिरोने का काम करते हैं। किसन बनकर- भगत
ग्राम बिरुल बाज़ार शरीर मे नाड़े पिरोने की वजह से इस आयोजन के नाम मे नाड़ा शब्द जुड़ा है जबकि गाड़ा शब्द बैलगाड़ी का प्रतीक है । कुछ लोग शरीर मे नाड़े पिरोकर मन्नत पूरी करते हैं तो वहीं दूसरे आयोजन गाड़ा में कई बैलगाड़ियों को एक लकीर में बांध दिया जाता है और फिर इन बैलगाड़ियों को बैलों की मदद से नहीं बल्कि खुद देवी के बने भगत खींचते हैं ।
इस तरह से ये आयोजन नाड़ा गाड़ा कहलाता है । हालांकि चिकित्सकों का कहना है कि शरीर मे लोहे की सुई से नाड़े पिरोना गंभीर इंफेक्शन को न्यौता देने जैसा है । स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि हर गाँव तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद हैं लेकिन तब भी लोग ना जाने क्यों इस तरह की खतरनाक परम्परा को निभा रहे हैं ।
अस्पताल अधीक्षक, जिला अस्पताल बैतूल बीमारियों से निजात पाने का ऐसा खतरनाक तरीका लोगों की आस्था का हिस्सा जरूर है लेकिन ये कितना घातक हो सकता है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है । इक्कीसवीं सदी के भारत मे ये नज़ारे हैरतभरे हैं ।
जागरूकता की कमी और बदल चुकी परम्पराएं भी इसकी बड़ी वजह हैं । ये सब कब और कैसे रुकेगा इस पर मंथन होना बेहद ज़रूरी बन जाता है। लेकिन आस्था से जुड़ा ऐ बडा सवाल है। लोग अपनी आस्था अनुसार पुजा अर्चना और साधना करते हैं।