
बारूद नहीं विकास वाला बस्तर : चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार
रायपुर/ सुकमा। बारूद नहीं विकास वाला बस्तर : बस्तर की हवा में जहां नक्सलियों ने बारूद की गंध घोल रखी थी, आज वहां विकास की बयार बह रही है।
वैसे तो सुकमा जिले के चिंतागुफा नाम सुनते ही सबसे पहले लोगों के जेहन में ताड़मेटला कांड की याद ताज़ा हो जाती है। देश के सबसे बड़े नक्सल हमले में हमने अपने 76 जवान खोये थे, लेकिन घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र ने वह कर दिखाया है, जिसकी कभी कल्पना मुश्किल थी।
बारूद नहीं विकास वाला बस्तर : कैसे बस्तर में हुआ ये बदलाव
पहले ब से बारूद या फिर ब से बन्दूक और फिर उसके बाद ब से बस्तर पढ़ाया जाता था। इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ नक्सली जिम्मेदार थे। वे कभी नहीं चाहते थे कि बस्तर का विकास हो। बारूद वाला बस्तर जल्दी से विकास वाला बस्तर बने।
सुरक्षाबलों की सक्रियता और सरकार की नीतियों के चलते अब नक्सलवाद आखिरी साँसें गिन रहा है। तो वहीं डबल इंजन की सरकार के गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद के ख़ात्मे की आखिरी मियाद भी तय कर दी है।
तभी तो चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र को केंद्र सरकार के राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया है। स्वास्थ्य केंद्र को 89.69 प्रतिशत का उत्कृष्ट स्कोर प्राप्त हुआ है।
45 धुर नक्सलवाद प्रभावित गांवों के लोगों का होता है इलाज
15 व 16 नवंबर 2024 को केंद्र सरकार की एनक्वास टीम ने चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र का मूल्यांकन किया था। ओपीडी, आईपीडी, लैब, लेबर रूम और प्रशासनिक कार्य जैसे सभी विभागों की समीक्षा में उच्च रैंक हासिल किया।
चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत पांच उप स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिसमें 45 धुर नक्सल प्रभावित गांव आते हैं। सुकमा कलेक्टर के अपहरण के बाद रिहाई का क्षेत्र हो या बुरकापाल में बलिदानियों की याद, सब इसी इलाके की घटना है।
कोंटा विकासखंड अंतर्गत स्थित यह क्षेत्र घोर नक्सल प्रभावित है, जिसके अंदरूनी गांवों में आज भी नक्सलियों की दहशत है। हालांकि, बदले हालात में नक्सली कमजोर हो रहे हैं और लोगों तक सरकारी मदद पहुंच रही है।
जब नक्सलियों ने एंबुलेंस पर किया था अटैक
चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र 2009 में आरएमए मुकेश बख्शी की पदस्थापना से अस्तित्व में आया था। 11 अप्रैल 2011 को नक्सलियों ने एंबुलेंस पर हमला कर दिया, जिसमें आरएमए मुकेश बख्शी और कई बच्चे मौजूद थे। आरएमए एंबुलेंस में बच्चों को बेहतर इलाज के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र दोरनापाल जा रहे थे।
इसी दौरान नक्सलियों ने एम्बुस लगाकर एंबुलेंस पर गोलीबारी की। हालांकि, किस्मत से किसी को गोली नहीं लगी। नक्सलियों ने सभी को नीचे उतार कर जमीन पर लिटाकर बंदूक टिका दिया था।
आरएमए मुकेश बख्शी के बार-बार निवेदन करने पर नक्सलियों ने सभी को छोड़ दिया। बख्शी ने सेवा भावना से लोगों का दिल जीतकर क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की नींव मजबूत की। बक्शी को धन्वंतरी और हेल्थ आइकान सम्मान दिया गया था ।
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