Basant Panchami 2025: भारत में माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन को विद्या और ज्ञान की देवी मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। बसंत पंचमी के साथ वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है, जो खुशहाली और नई ऊर्जा का प्रतीक है।
इस पर्व को माघ पंचमी भी कहा जाता है। वसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता है, और यही कारण है कि यह दिन प्रकृति और अध्यात्म दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
बसंत पंचमी का महत्व
इस दिन देवी सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। विशेष रूप से साहित्य, शिक्षा और कला से जुड़े लोग इस दिन को विशेष रूप से महत्व देते हैं। देवी सरस्वती को विद्या, संगीत, कला और वाणी की देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से बुद्धि, ज्ञान और विवेक का विकास होता है।
बसंत पंचमी और वसंत ऋतु
बसंत पंचमी से ही वसंत ऋतु का आगमन होता है। खेतों में फसलें लहलहा उठती हैं, सरसों के फूलों की पीली चादर बिछ जाती है, और चारों ओर हरियाली व खुशहाली का माहौल बन जाता है। यह दिन प्रकृति के उल्लास और नई शुरुआत का प्रतीक है।
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा
बसंत पंचमी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। प्रमुख कथा सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा से संबंधित है। माना जाता है कि जब ब्रह्मा ने संसार की रचना की, तो उन्हें सृष्टि सुनसान और शांत लगने लगी।
इस स्थिति से संतुष्ट न होकर उन्होंने भगवान विष्णु की अनुमति से अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। इस जल के पृथ्वी पर गिरने से कंपन हुआ और एक अद्भुत देवी प्रकट हुईं।
इस देवी के चार हाथ थे। एक हाथ में वीणा, दूसरे में वर मुद्रा, तीसरे में पुस्तक और चौथे में माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा बजाई, संसार के सभी जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई।
इसके बाद से देवी को ‘सरस्वती’ के नाम से पुकारा जाने लगा। देवी सरस्वती ने वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि का भी वरदान दिया।
यही कारण है कि बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन उन्हें बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी जैसे कई नामों से पूजा जाता है।
Basant Panchami 2025
बसंत पंचमी के धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू
बसंत पंचमी के दिन विशेष रूप से पीले रंग का महत्व होता है। पीला रंग समृद्धि, ऊर्जा और ज्ञान का प्रतीक है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और पीले रंग के पकवान बनाते हैं। मां सरस्वती को पीले फूल, हल्दी और पीले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
इस पर्व को शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में शुभ मानते हुए छोटे बच्चों को इस दिन पहली बार पढ़ाई शुरू कराई जाती है, जिसे ‘अक्षरारंभ’ या ‘विद्यारंभ’ कहा जाता है। इसके अलावा, विभिन्न स्कूलों और संस्थानों में सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है।
बसंत पंचमी का आधुनिक संदर्भ
आज के समय में भी बसंत पंचमी का महत्व कम नहीं हुआ है। यह पर्व न केवल भारतीय संस्कृति में बल्कि पूरे विश्व में भारतीय समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है। वसंत पंचमी न केवल प्रकृति के प्रति श्रद्धा का पर्व है, बल्कि यह समाज को ज्ञान, कला और शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति की प्रेरणा भी देता है।
बसंत पंचमी का पर्व प्रकृति और संस्कृति का अद्भुत संगम है। यह दिन न केवल वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, बल्कि यह हमें देवी सरस्वती की कृपा से जीवन में ज्ञान और विवेक का मार्ग प्रशस्त करने की प्रेरणा भी देता है।
इस दिन की पूजा-अर्चना और उत्सव हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ते हैं और जीवन में नई ऊर्जा का संचार करते हैं।
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