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गौरेला पेंड्रा मरवाही छत्तीसगढ़ : Chherchhera Festival 2025 : छत्तीसगढ़ के लोकपर्व छेरछेरा की आज जिलेभर में धूम रही। यह पर्व छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है, जो खासतौर पर खेती-किसानी और ग्रामीण जीवन से जुड़ा हुआ है।
हालांकि समय के साथ शहरीकरण के कारण लोकपर्वों की चमक कुछ कम हुई है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में छेरछेरा का उल्लास अब भी जिंदा है। गांव-गांव में बच्चों की टोलियां घर-घर जाकर “छेर-छेरा, कोठी के धान हेरते हेरा” जैसे दोहे गाकर दान मांग रही हैं।
ग्रामीण इलाकों में इस पर्व को धान की कटाई और भंडारण के बाद खुशी और आभार व्यक्त करने के तौर पर मनाया जाता है। यह पर्व सामूहिकता और उदारता का प्रतीक है, जहां ग्रामीण एक-दूसरे के साथ मिलकर नाच-गाकर इस दिन को खास बनाते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में सैला और डंडा नृत्य का भी विशेष आकर्षण देखा गया। यह नृत्य परंपरा मध्यप्रदेश से प्रभावित है और छेरछेरा के दौरान ग्रामीणों के उत्साह को और बढ़ा रही है।
छोटे बच्चे इस पर्व में हाथ में थैला लेकर गांव-गांव और घर-घर जाकर चावल, धान या पैसे के रूप में दान इकट्ठा करते हैं। यह गतिविधि न केवल परंपराओं को सहेजती है, बल्कि बच्चों को अपने सांस्कृतिक मूल्यों से भी जोड़ती है।
जहां शहरी इलाकों में लोग चावल और पैसे के माध्यम से छेरछेरा मनाते हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में धान दान करने की परंपरा प्रमुख है। यह दान और साझा करने की भावना का एक बेहतरीन उदाहरण है।
छेरछेरा न केवल एक पर्व है, बल्कि यह ग्रामीण जीवन के सामूहिक आनंद, परंपराओं और कृषि संस्कृति का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर और लोकजीवन की जीवंतता को सहेजने का प्रयास किया जाता है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अलग-अलग अंदाज में मनाए जाने वाले इस पर्व ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति की विविधता और समृद्धि को एक बार फिर उजागर किया है।
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