
वन नेशन-वन इलेक्शन बिल पास कराना क्यों है मुश्किल? समझें पूरा गणित
वन नेशन-वन इलेक्शन (एक देश, एक चुनाव) को लेकर सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में इस संबंध में दो अहम बिल पेश किए हैं:
- संविधान (129वां संशोधन) बिल
- यूनियन टेरिटरी लॉ अमेंडमेंट बिल-2024
क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन?
वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इससे बार-बार चुनाव कराने की प्रक्रिया खत्म होगी और समय और संसाधन की बचत होगी।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति
वन नेशन-वन इलेक्शन के मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने चुनाव प्रणाली में बदलाव के लिए सुझाव दिए थे और यह तय किया कि एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन जरूरी होगा।
बिल पास कराना क्यों है मुश्किल?
- संविधान संशोधन की चुनौती:
- संविधान के 129वां संशोधन बिल को पास कराने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी।
- यह आसान नहीं है क्योंकि सरकार को विपक्षी दलों का भी समर्थन चाहिए होगा।
- विपक्ष का विरोध:
- विपक्षी दल वन नेशन-वन इलेक्शन का लगातार विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि यह संविधान की संघीय व्यवस्था के खिलाफ है और राज्यों की स्वायत्तता को कम करता है।
- राज्य सरकारों की भूमिका:
- वन नेशन-वन इलेक्शन को लागू करने के लिए कई राज्यों की विधानसभाओं का समर्थन भी जरूरी होगा।
- अलग-अलग राज्यों में चुनावी कार्यकाल अलग-अलग हैं, इसलिए इसे एक साथ लाना एक बड़ी चुनौती है।
- लॉजिस्टिक और तकनीकी समस्याएं:
- इतने बड़े स्तर पर एक साथ चुनाव कराने के लिए ईवीएम, सुरक्षा व्यवस्था और मैनपावर की भारी जरूरत होगी।
क्या है सरकार का तर्क?
- सरकार का कहना है कि बार-बार चुनाव होने से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है और विकास कार्यों में बाधा आती है।
- एक साथ चुनाव से सरकारी खर्च में कमी होगी और प्रशासनिक कामकाज में सुधार आएगा।