तीन दिन की समाधि बबिता बाबा हर साल तीन दिन की समाधि लेती हैं, जो 5 फीट गहरी ज़मीन में होती है। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है और अनुयायियों में गहरी आस्था का प्रतीक है।
गुरु घासीदास जयंती का विशेष महत्व बबिता बाबा समाधि से 18 दिसंबर, गुरु घासीदास जयंती के दिन बाहर आती हैं। यह दिन उनके अनुयायियों के लिए बेहद खास होता है।
पंथी नृत्य और भजन-कीर्तन समाधि के दौरान अनुयायी पंथी नृत्य, भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों के जरिए वातावरण को पवित्र बनाए रखते हैं।
समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक बबिता बाबा की समाधि परंपरा के दौरान गाँववाले एकजुट होते हैं, जिससे समाज में भाईचारा और समरसता को बढ़ावा मिलता है।
धार्मिक और सामाजिक मार्गदर्शन बबिता बाबा आध्यात्मिक उपदेश के साथ समाज की समस्याओं का समाधान करने में मार्गदर्शन करती हैं।
ग्राम कुँरा की पहचान धरसीवां के कुँरा गाँव में होने वाली यह समाधि परंपरा गाँव को धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र बना चुकी है।