Shardiya Navratri 2025 : डेस्क न्यूज। सनातन धर्म में शारदीय नवरात्रि का पर्व माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना का विशेष अवसर माना जाता है। यह पर्व शक्ति, समृद्धि और साहस का प्रतीक है, जो भक्तों के जीवन में सुख-शांति और धन-धान्य की वृद्धि का आशीर्वाद लेकर आता है। नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना के साथ होती है, जिसमें मिट्टी के पात्र में जौ बोने की परंपरा विशेष महत्व रखती है। तो आइए जानते हैं कि इस प्रथा के पीछे क्या धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताएँ हैं।

Shardiya Navratri 2025 : जौ का धार्मिक महत्व-
आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार, जौ को अनाज का प्रथम और सबसे पवित्र रूप माना जाता है। यह उर्वरता, समृद्धि और जीवन शक्ति का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के पात्र में स्वच्छ मिट्टी डालकर जौ बोए जाते हैं और इसे माता के समक्ष रखकर नौ दिनों तक नियमित जल अर्पित किया जाता है। यदि जौ अच्छे से अंकुरित होते हैं, तो यह घर में खुशहाली और आर्थिक स्थिरता का संकेत माना जाता है। वहीं, यदि अंकुरण में रुकावट आती है, तो इसे भविष्य की चुनौतियों का प्रतीक माना जाता है।

Shardiya Navratri 2025 : पौराणिक कथाएँ-
पुराणों में बताया गया है कि जब असुरों के अत्याचार से पृथ्वी त्रस्त थी, तब माँ दुर्गा ने उनका वध कर धरती को बचाया। उस समय भयंकर सूखे और अकाल ने धरती को बंजर कर दिया था। माँ दुर्गा की विजय के बाद जब धरती फिर से हरी-भरी हुई, तो सबसे पहले जौ की फसल उगी। तभी से जौ को समृद्धि और जीवनदायी शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम जौ को प्रकट किया था। यह नई शुरुआत और धरती की उर्वरता का प्रतीक बन गया। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन जौ बोना और उनकी पूजा करना माता के आशीर्वाद से जीवन में प्रगति और मंगल की कामना को दर्शाता है।

Shardiya Navratri 2025 : परंपरा और प्रतीकात्मकता-
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के दौरान मिट्टी के पात्र में जौ बोने की प्रक्रिया बेहद पवित्र मानी जाती है। जौ का अंकुरण जीवन में ऊर्जा, प्रगति और शुभता का प्रतीक है। जिस तेजी और मजबूती से जौ उगते हैं, उसे परिवार के लिए उतना ही शुभ और लाभकारी माना जाता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह भक्तों को प्रकृति के साथ जुड़ने और जीवन की निरंतरता को समझने का संदेश भी देती है।
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