
क्रिटिकल मिनिरल्स पर कसता चीन का शिकंजा : भारत - रूस समेत पूरी दुनिया को ऐसे दे रहा टेंशन
नई दिल्ली। क्रिटिकल मिनिरल्स पर कसता चीन का शिकंजा : अभी अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक के जेट इंजन मामले वाले तनाव से भारत उबर भी नहीं पाया था कि कोरोना और तमाम दूसरी वायरल बीमारियों के अलावा चीन ने नई चुनौती कड़ी कर दी। ये चुनौती है क्रिटिकल मिनिरल्स की। चीन इस पर लगातार अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है। हालात पर अगर तत्काल काबू नहीं पाया गया तो फिर एक न एक दिन पूरी दुनिया को चीन के आगे हाथ जोड़ना पडेगा। चीन की रणनीति भी यही है कि कैसे दुनिया को अपने आगे झुकाने पर मजबूर किया जाए ?
क्रिटिकल मिनिरल्स पर कसता चीन का शिकंजा : पहले इस मामले को समझें
दरअसल आजकल मोबाइल फोन, कंप्यूटर, बैटरी, यहां तक कि हथियार बनाने के लिए भी कुछ खास तरह के खनिजों की जरूरत पड़ती है। इन्हें महत्वपूर्ण खनिज कहते हैं। चीन ने बड़ी चालाकी से इन खनिजों पर अपना कब्जा जमा लिया है, जिससे अब पूरी दुनिया में टेंशन बढ़ रही है।
असल में लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट, टाइटेनियम – ये खनिज दुनिया की अर्थव्यवस्था की नींव हैं। इनके बिना न तो स्मार्टफोन बनेंगे, न ही हवाई जहाज और न ही वो तकनीक जिससे हम ग्लोबल वार्मिंग से लड़ सकते हैं। ये खनिज आज की टेक्नोलॉजी की जान हैं।
इनके बिना आधुनिक दुनिया की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, लेकिन, इन पर चीन की पकड़ लगातार मजबूत होती जा रही है। इसका मतलब यह है कि चीन के पास एक ऐसा हथियार है जिससे वो दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला सकता है, टेक्नोलॉजी प्रगति को रोक सकता है और अपनी मनमानी चला सकता है।
आखिर होते क्या हैं ‘महत्वपूर्ण खनिज’ ?
ये ऐसे खनिज होते हैं जो किसी देश की तरक्की और सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी होते हैं। उन्हें महत्वपूर्ण खनिज कहते हैं। असल में ये खनिज हर जगह नहीं मिलते या फिर कुछ ही देशों में ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं, अगर किसी देश को ये खनिज आसानी से नहीं मिलते, तो उसकी इंडस्ट्री को काफी नुकसान हो सकता है. मतलब ये खनिज किसी भी देश के लिए ‘सोने’ से कम नहीं हैं।
भारत की समझ में कुछ देर से आया
भारत सरकार ने भी इन खनिजों की अहमियत को समझा है। सरकार ने 30 महत्वपूर्ण खनिजों की एक लिस्ट बनाई है, जिनमें लिथियम, कोबाल्ट, निकल, टाइटेनियम जैसे नाम शामिल हैं।
चालबाज चीन ने अमेरिका को दिया ‘तगड़ा झटका’
अभी हाल ही में चीन ने अमेरिका की 28 कंपनियों को अपनी एक्सपोर्ट कंट्रोल लिस्ट में डाल दिया। मतलब अब ये कंपनियां चीन से कुछ खास चीजें नहीं खरीद पाएंगी। चीन ने जिन चीजों पर रोक लगाई है, उनमें ऐसे खनिज हैं जो आजकल की टेक्नोलॉजी के लिए बहुत जरूरी हैं।
कहां प्रयोग होते हैं ये खनिज :
आपकी सुविधा के लिए हम कुछ क्रिटिकल मिनिरल्स के उपयोग आपको समझने की कोशिश करते हैं।
टंगस्टन – यह बहुत मजबूत होता है, इसलिए इससे बल्ब और मिसाइल बनते हैं।
गैलियम – यह मोबाइल फोन और सैटेलाइट में इस्तेमाल होता है।
मैग्नीशियम – यह बहुत हल्का होता है, इसलिए इससे हवाई जहाज बनते हैं।
चीन ने 2025 में अमेरिका की कंपनियों पर जो पाबंदी लगाई है, वो कोई नई बात नहीं है। चीन पहले भी कई बार ऐसा कर चुका है। 2010 में चीन ने जापान को कुछ खास खनिज बेचने से मना कर दिया था। अभी हाल ही में चीन ने कुछ और खनिजों (जैसे एंटीमनी, गैलियम और जर्मेनियम) के एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी थी। दिसंबर 2023 में चीन ने कुछ खास टेक्नोलॉजी के एक्सपोर्ट पर भी बैन लगा दिया था, जिनसे जमीन से खनिज निकाले जाते है।
चीन जानबूझकर ऐसे खनिजों पर निशाना साधता है जो अमेरिका और उसके दोस्तों के लिए बहुत जरूरी होते हैं। खासकर वो खनिज जिनसे कंप्यूटर चिप, बैटरी और दूसरी हाई-टेक चीजें बनती हैं। हालांकि, चीन ऐसे खनिजों पर रोक नहीं लगाता जिनके लिए उसे खुद दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। वो ऐसा कोई काम नहीं करता जिससे उसकी खुद की कंपनियों या एक्सपोर्ट को नुकसान हो।
भारत में खनिजों की कैसी है स्थिति ?
भारत को अभी अपने पैरों पर खड़ा होना है तो दूसरों पर निर्भरता कम करनी होगी। यही बात इन जरूरी खनिजों पर भी लागू होती है। अभी भारत अपनी जरूरत का 60% सामान चीन से मंगवाता है, खासकर वो खनिज जो इलेक्ट्रॉनिक चीजों में लगते हैं।
अमेरिका समेत कई देशों को अब समझ आ रहा है कि महत्वपूर्ण खनिजों पर कब्जा कितना जरूरी है। चीन का बढ़ता दबदबा भारत के लिए भी एक चेतावनी है। भारत को खनिजों की खोज और उत्पादन को बढ़ाना होगा।
पिछले साल जम्मू-कश्मीर में लिथियम मिलने से भारत को बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन अभी तक कोई भी कंपनी वहां खनन करने को तैयार नहीं है। सरकार खनिजों के लिए नीलामी कर रही है, लेकिन ज्यादातर ब्लॉक कोई खरीदार नहीं मिल रहा है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में केवल 48% ब्लॉक ही नीलाम हो पाए हैं।
भारत में आर्थिक बदलाव में क्रिटिकल मिनिरल्स कितने जरूरी
वैसे तो आजकल दुनियाभर में ‘ग्रीन एनर्जी’ की बात हो रही है, मतलब ऐसी ऊर्जा जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा. भारत भी इसी रास्ते पर चल रहा है। अब इसके लिए कुछ खास खनिजों की जरूरत है जैसे लिथियम, कोबाल्ट और निकल। ये खनिज बैटरी, सोलर पैनल और विंड टरबाइन जैसी चीजों के लिए बहुत जरूरी हैं। इन्हीं से इलेक्ट्रिक गाड़ियां भी चलती हैं।
वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि 2050 तक ग्रेफाइट, लिथियम और कोबाल्ट जैसे खनिजों का उत्पादन 500% तक बढ़ सकता है ताकि क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके, क्योंकि भारत ने 2070 तक ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का उत्सर्जन शून्य करने का लक्ष्य रखा है।
भारत ने 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक गाड़ियों का लक्ष्य रखा है। इसके लिए जरूरी है कि बैटरी बनाने वाले खास खनिज हमें आसानी से मिलें। अगर भारत में ही ये खनिज मिलेंगे तो बैटरी सस्ती होगी तो गाड़ियां भी सस्ती हो जाएंगी। जब गाड़ियां सस्ती होंगी तो ज्यादा लोग इन्हें खरीद पाएंगे।
अगर भारत में ये खनिज मिलेंगे तो क्या होगा?
आजकल हर चीज में कंप्यूटर है। इन सबके लिए ‘सेमीकंडक्टर’ नाम की चीज जरूरी होती है। सेमीकंडक्टर बनाने के लिए कुछ खास खनिज चाहिए, जैसे गैलियम और जर्मेनियम। अगर भारत में ही ये खनिज मिलेंगे तो देश खुद सेमीकंडक्टर बना पाएगा। सेमीकंडक्टर बनाने के कारखाने लगेंगे, तो लोगों को नौकरियां मिलेंगी भारत और तेजी से आगे बढ़ेगा।
इकनॉमिक सर्वे 2023-24 की रिपोर्ट बताती है कि 2030 तक इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री में हर साल 49% की बढ़ोतरी होगी, लेकिन भारत अकेले ये सब नहीं कर सकता। भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ एक खास समझौता किया है, जिसका नाम है ‘क्रिटिकल मिनरल्स इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप’ । इस समझौते से भारत को ऑस्ट्रेलिया से जरूरी खनिज आसानी से मिल सकेंगे। इसके अलावा भारत की एक कंपनी है जिसका नाम है ‘काबिल’ (KABIL). यह कंपनी भी दूसरे देशों से लिथियम और कोबाल्ट जैसे खनिज खरीदने की कोशिश कर रही है।
अभी तो चीन दुनिया के 90% खनिजों को प्रोसेस करता है. लेकिन भारत के पास भी तो खनिजों का भंडार है। KABIL जैसी कंपनियां दूसरे देशों से साझेदारी करके दुनिया भर में अपना माल बेच सकती हैं।
भारत के सामने कौन सी मुश्किलें
जरूरी खनिजों के मामले में भारत अभी भी ‘दूसरों के हाथों का खिलौना’ है। यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि अगर कोई देश हमें खनिज देना बंद कर दे, तो हमारे कई उद्योग बंद हो सकते हैं। चीन जब चाहे दाम बढ़ा सकता है या सप्लाई रोक सकता है, जिससे भारत को नुकसान होगा। भारत अपनी पूरी जरूरत का जर्मनीयम चीन से मंगवाता है। चीन ने 2023 में इस खनिज के निर्यात पर कुछ पाबंदियां लगा दीं थी।
भारत में जरूरी खनिज जरूर हैं, लेकिन उन्हें ढूंढने और निकालने में अपना देश पीछे है। यह एक समस्या है क्योंकि हमें नहीं पता कि हमारे पास कितना और कौन-सा खनिज है। खनिज ढूंढने के हमारे तरीके पुराने हैं. कंपनियां खनिजों में पैसा लगाने से डरती हैं, क्योंकि उन्हें पूरी जानकारी नहीं मिलती। यह ऐसा है जैसे आपके घर में एक तहखाना हो, जिसमें सोना-चांदी भरा है लेकिन आपको उसके बारे में पता ही न हो। सरकार ने 2020 से 2023 के बीच कई जगहों पर खनिज निकालने के लिए नीलामी की, लेकिन आधे से ज्यादा जगहों को कोई खरीदार ही नहीं मिला, क्योंकि कंपनियों को वहां खनिज मिलने का भरोसा नहीं था।
चीन का दबदबा आखिर कैसे बढ़ा रहा है तनाव
चीन दुनिया के क्रिटिकल मिनरल्स के उत्पादन और प्रोसेसिंग का एक बहुत बड़ा हिस्सा कंट्रोल करता है। इसका मतलब है कि दूसरे देशों को अपनी जरूरतों के लिए चीन पर निर्भर रहना पड़ता है। यह निर्भरता चीन को बाजार में मनमानी करने की ताकत देती है, जैसे दाम बढ़ाना या सप्लाई रोकना।
चीन अपनी इस पकड़ का इस्तेमाल रणनीतिक हथियार के रूप में भी कर सकता है। वह दूसरे देशों को नीचा दिखाने या उन पर दबाव बनाने के लिए खनिजों की सप्लाई रोक सकता है, जैसे 2010 में चीन ने जापान के साथ विवाद के दौरान दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का निर्यात रोक दिया था।
चीन के दबदबे से दुनिया भर में आर्थिक असंतुलन पैदा हो रहा है। चीन को खनिजों के व्यापार से भारी मुनाफा होता है, जबकि दूसरे देशों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। क्रिटिकल मिनरल्स को लेकर देशों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। अमेरिका और यूरोपीय देश चीन के प्रभाव को कम करने के लिए अपनी सप्लाई चैन को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. यह होड़ भू-राजनीतिक तनाव को और बढ़ा सकती है।
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