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जोगी के किस्से
अगर आप छतीसगढ़ से है और तनिक भी राजनिति समझते है तो जोगी ये शब्द सुनकर आपके सामने सिर्फ एक ही चेहरा आता है वो है “अजीत प्रमोद जोगी” वही अजीत जोगी जिन्होंने जीवन में जो चाहा वो पाया ,वही जोगी जो बिलासपुर जिले और वर्तमान में गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के छोटे से गाँव जोगिसर से शुरू हुई उनकी यात्रा प्रध्यापक ,आईपीएस , आईएएस , राज्यसभा – लोकसभा सदनों से होते हुए वर्ष 2000 में छतीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री तक पहुंची और ऐसे पहुंची की आज भी छतीसगढ़ की राजनिति सपनों के सौदागर जोगी से बाहर नहीं आ पाई है |
ये कलेक्टर क्या होता है ?
कहानी है उन दिनों की है जब जोगी अपने गांव में ही रहकर स्कूल की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे और उनके गांव जोगीसर में एक मर्तबा कलेक्टर साहब कुछ काम से पहुंचे थे और उनका कार्यक्रम स्कूल में ही था, जोगी भी स्कूल में ही थे और जब कलेक्टर साहब पहुंचे तो लोगों ने जो कलेक्टर की आव् भगत और सम्मान दिया इसे जोगी काफी प्रभावित हुए और उन्होंने मास्टर जी से पूछा कि यह कलेक्टर क्या होता है ? मास्टर साहब ने जवाब दिया कलेक्टर मतलब बड़ा अधिकारी, जिले में वही होता है जो वह चाहता है| और ये बात जोगी के मन में घर कर गई फिर उस दिन से अजीत जोगी ने ठाना कि उन्हें एक न एक दिन कलेक्टर बनना है और वह आखिर में उस शिखर तक भी पहुंचे |
आईपीएस या आईएएस में कौन बड़ा ?
यह कहानी है उन दिनों की जब आईएएस और आईपीएस दोनों की ट्रेनिंग एक ही जगह मसूरी में होती थी जहां जोगी एक आईपीएस के रूप में ट्रेनिंग करने पहुंचे थे जब वह ट्रेनिंग कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि कहीं ना कहीं आईएएस अधिकारियों को आईपीएस अधिकारियों की तुलना में अधिक सुविधाएं दी जाती है तथा उनका सम्मान भी अधिक होता है फिर जोगी ने ठाना की वह पुनः परीक्षा दिलाएंगे और इस बार आईएएस में चयनित होंगे |
जब पैरों से नापकर और सिगरेट के पेपर पर नींव रखी अमरकंटक के कल्याण आश्रम की
यह कहानी उन दिनों की है जब जोगी शहडोल जिले के कलेक्टर हुआ करते थे वह एक दिन किसी काम से अमरकंटक पहुंचे हुए थे अमरकंटक पर उन्हें जानकारी मिली कि वहां कोई एक सिद्ध बाबा बड़े दिनों से तपस्या कर रहे हैं जोगी को यह जानकारी मिली पर जोगी वहां से निकल गए शाम को लौटते वक्त काफी बारिश और बड़े-बड़े पत्थर गिर रहे थे जिसके कारण जोगी के ड्राइवर गाड़ी चलाने में असमर्थ नजर आ रहे थे फिर जोगी नहीं स्टेरिंग थामा और जिज्ञासा वश उस स्थान पर पहुंचे जहां पर उन्हें बताया गया कि साधु तपस्या कर रहे है जोगी वहां पहुंचे तो देखा कि साधु अपनी तपस्या में लीन है बारिश में भीगते हुए पर उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है फिर क्या था जोगी ने तुरंत अगले दिन सुबह बाबा के पास पहुंचे और बाबा से बात की और उनसे निवेदन किया कि आप यहां पर तपस्या के साथ-साथ बच्चों के शिक्षण की भी यह भी कोई कार्य करें और उन्होंने अपने पैरों से जमीन नापकर कल्याण आश्रम के लिए जमीन आबंटित किया और पटवारी प्रतिवेदन के लिए जोगी ने अपनी सिगरेट की डब्बी के गोल्ड पेपर का उपयोग करते हुए उसे पर ही पटवारी प्रतिवेदन बना डाला और ऐसे ही नीव रखी कल्याण आश्रम की |
ढाई घंटे में कलेक्टर से नेता बने जोगी
बात उन दिनों की है जब राजीव गांधी एयर इंडिया में पायलट हुआ करते थे, वह अपनी यात्रा के दौरान कई बार इंदौर आया करते थे और उस समय जोगी इंदौर के कलेक्टर हुआ करते थे उस दौर में जोगी ने एयरपोर्ट अथॉरिटी को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि जैसे ही राजीव गांधी का विमान लैंड करें या उनके आने की कोई सूचना हो तो तत्काल उन्हें इस बात से अवगत कराया जाया और राजीव गांधी जब भी आते थे तो उनके स्वागत के लिए खुद जोगी भी पहुंच जाते थे और उनके लिए भोजन की व्यवस्था करते थे जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्हें मध्य प्रदेश और वर्तमान छत्तीसगढ़ में एक ऐसा युवा आदिवासी नेता की जरूरत महसूस हुई जो तेज तर्रार हो और बोलचाल में भी तेज हो तो उन्हें याद जोगी | उनके कार्यालय से अजीत जोगी के बंगले पर फोन आया तब जोगी जी सो रहे थे उन्हें जगाया गया और बताया गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन है और फोन पर जो अगली आवाज थी वह यह थी कि “तुम्हारे पास ढाई घंटे है अगर राजनिति में आना है तो आ जाओ दिग्विजय सिंह आ रहे हैं उन्हें फैसला बता देना और जब ढाई घंटे बाद बाद दिग्विजय सिंह पहुंचे तब तक जोगी नए इतिहास रचने वाले नेता के रूप में उनका इंतजार कर रहे थे वह नेता जो छत्तीसगढ़ में एक नया इतिहास रचने वाला था |
छत्तीसगढ़ का उदय और सोनिया गांधी की करीबी
वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ बना तो छत्तीसगढ़ में स्थित 90 विधानसभा सीटों पर बहुमत कांग्रेस के पास थी सभी को लगता था कि नए मुख्यमंत्री के रूप में शुक्ला ब्रदर्स या फिर मोतीलाल वोरा में से किसी एक को कमान मिल सकती है पर दोनों की बीच अदावत स्पष्ट नजर आ रही थी अगर दोनों में से किसी एक को जिम्मेदारी दी जाती तो मामला उलटा पड़ सकता था और छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री निर्णय लेने का फैसला सोनिया गांधी तक पहुंच गया, और जोगी की किस्मत खुल गई | अजीत जोगी जब सांसद हुआ करते थे तो वह हर संडे उस चर्च पर ही जाया करते थे जिस चर्च पर सोनिया गांधी भी आती थी और दोनों के मध्य इस दौरान हमेशा अभिवादन हुआ करता था और इसी के साथ जोगी राजीव गांधी के बाद सोनिया गांधी के भी करीबी बन चुके थे और जब सोनिया गांधी ने इस बात की घोषणा की की छत्तीसगढ़ आदिवासियों के लिए बना एक राज्य है तो इसका प्रथम मुख्यमंत्री भी एक आदिवासी ही होना चाहिए हालांकि जोगी की जाति को लेकर हमेशा से सवाल उठाते रहे हैं और उनकी मृत्यु के बाद भी आज भी उनकी जाति एक संशय का विषय है |
जिस पर हमारे साथी संजय दुबे की चार लाइन सही बैठती है |
जाति-जाति चिल्लाते सब, पहुँच गए थे कोर्ट
ऐसा उत्तर मिला न अबतक जिससे हो संतोष,
‘जाति’ न पूछो जोगी की, पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान ।।
जब दुश्मन को ही मिला मुख्यमंत्री बनवाने का जिम्मा
बात उन दिनों की है जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस 1993 विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला और ऐसे में अर्जुन सिंह, माधवराव् सिंधिया और दिग्विजय सिंह इन तीनों नाम के साथ एक नाम और भी था जो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की रेस में था वह नाम था अजीत जोगी हालांकि इन सब के बीच दिग्विजय सिंह आगे निकले और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और अब उन्हें ही अजीत जोगी को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलवाने और विधायकों को उनके नाम पर राजी करने की जिम्मेदारी दी गई हालांकि यह काम करते-करते दिग्विजय सिंह का कुर्ता फट गया पर सोनिया गांधी के दिए इस काम को दिग्विजय सिंह ने बखूबी निभाया और अजीत जोगी विधायक दल का नेता चुने गए |
एक ऐसी दुर्घटना जिससे जोगी फिर कभी उठ नहीं पाए
2003 में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में सत्ता गवाने के बाद जोगी का मुख्यमंत्री कार्यकाल भी समाप्त हुआ इसके बाद जोगी 2004 के लोकसभा चुनाव में जुट गए और कांग्रेस ने उन्हें महासमुंद से अपना लोकसभा प्रत्याशी बनाया और लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान अजीत जोगी गरियाबंद के निकट 4 अप्रैल 2004 को कार दुर्घटना हुई और इस दुर्घटना में अजीत जोगी को काफी चोटे लगी अजीत जोगी के कमर और पैर की कई हड्डियां टूट चुकी थी प्रत्यक्ष दर्शी बताते हैं कि उस वक्त जोगी होश में नहीं थे घायल अजीत जोगी को गरियाबंद के डॉक्टर ने रायपुर ले जाने को कहा और गरियाबंद से रायपुर के लिए मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कॉरिडोर बनाया और रायपुर में इलाज चलने के बाद उन्हें दिल्ली ले जाया गया और साल भर तक दिल्ली में इलाज चला और इस घटना के बाद अजीत जोगी ना ही शारीरिक रूप से और ना ही राजनीतिक रूप से फिर उठ पाए |
अंतागढ़ उपचुनाव और जोगी की कांग्रेस से विदाई
वर्ष 2014 में छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले की अंतागढ़ विधानसभा में उपचुनाव होते हैं इस उप चुनाव में कांग्रेस ने मंतूराम पवार को अपना प्रत्याशी बनाया बाद में मंतुराम पवार ने अपना नामांकन वापस ले लिया और उन्होंने आरोप लगाया की तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनके विधायक बेटे अमित जोगी के द्वारा उन्हें 7 करोड रुपए का लालच दिया गया और उन पर दबाव बनाकर उन्हें मैदान छोड़ने को कहा गया हालांकि इस विवाद पर एक ऑडियो टेप जारी होता है जिसमें खरीद फरोख्त और डीलिंग का जिक्र किया गया था इस ऑडियो के वायरल होने के बाद कांग्रेस ने जोगी के पुत्र अमित जोगी को 6 साल के लिए कांग्रेस से निष्कासित कर दिया हालांकि अजीत जोगी पर कोई कार्यवाही नहीं की गई, इस कार्यवाही के बाद अजीत जोगी जैसे अलग से पड़ गए हालांकि जोगी अपनी ओर से एड़ी चोटी का जोर लगाते रहे की अमित जोगी का निष्कासन रद्द हो पर उनका निष्कासन रोक नहीं पाये इसके बाद जोगी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और 21 जून 2016 को अपनी खुद की एक नई पार्टी बनाई जिसका नाम रखा छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी |
2018 विधानसभा चुनाव और जनता कांग्रेस का चुनाव में पदार्पण
साल 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने थे इस चुनाव में पहली बार भाजपा-कांग्रेस के अलावा एक और पार्टी जो बड़े दमखम के साथ चुनाव लड़ते नजर आई वह थी अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी जिसने बहुजन समाज पार्टी के साथ एलाइंस किया था| अजीत जोगी ने अपने 72वें जन्मदिन पर नारा दिया मिशन 72 जिसका अर्थ था जोगी कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को 72 सीट पर जीत दिलाना हालांकि विधानसभा चुनाव के परिणाम इसके उलट आए छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस और उनके गठबंधन को 90 में से केवल 7 सीटों पर जीत मिली जिनमें दो सीटे खुद जोगी परिवार की थी इसके बाद से कहीं ना कहीं जोगी राजनीतिक हाशिये पर जाने लगे |
गंगा इमली और जोगी मौत
साल 2020 जोगी अपने आधिकारिक आवास सागौन बंगले में दोपहर के समय खाने के बाद गंगा इमली का आनंद ले रहे थे और इसी बीच उनके गले में गंगा इमली का बीज फस जाता है और उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगती है इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया जाता है और उन्हें कार्डियक अरेस्ट आ जाता है और 29 मई 2020 को जोगी हम सब से और छत्तीसगढ़ की माटी से विदा ले लेते
जोगी के जाने पर पत्रकार संजय दुबे की यह कृति हमेशा जोगी को हमारी यादो में जिन्दा रखने कारगर होगी |
तुम थे एक अजीत योद्धा, कहने की ये बात नहीं
राजनीति के चतुर खिलाड़ी, हर विद्या के थे ज्ञानी,
शिक्षा, पुलिस और प्रशासन सबके थे तुम ज्ञाता
लगा सियासत का जब चस्का राजनीति ही भाता।
भूल न पाए ‘जोगी डबरी’ बीत गए कई साल
सूबे में जब घटे बड़ा कुछ, जोगी का ही हाथ,
चोला हुआ ‘गुलाबी’ जबसे, बढ़ने लगे प्रहार
किंतु न आया अवसर ऐसा जब मानी हो हार।
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